(उपर्युक्त पृ.160,बल लेखक का) यहीं पाद टिप्पणी में उन्होंने चार्वाक् की वह उक्ति उद्धृत की है,जिसमें कहा गया है कि चार भौतिक तत्त्वों के देहाकार में परिणत होने से मदशक्तिवत् चैतन्य उत्पन्न होता है और उनके नष्ट होने से वह भी नष्ट हो जाता है।
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दिनकर वस्तुतः सांस्कृतिक चेतना से ओतप्रोत रचनाकार है जिनके काव्य का विजातीय भाषा में अनुवाद करना कठिन होते हुए भी लक्ष्य भाषा पाठ में समतुल्य अभिव्यक्तियों, व्याख्यात्मक अनुवाद तथा पाद टिप्पणी की तकनीक द्वारा मूल संदेश के अधिकतम संप्रेषण को सार्थक बनाया गया है.
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सच कहा केवल हिमांशु ही कह सहते हैं और हाँ केवल वाणी ही उतनी शिद्दत के साथ समझ सकती हैं-परम्परा और संस्कृति के अनुरूप-यह बिहारी की पाद टिप्पणी-मेरीसच भाव बाधा हरो राधा नागर सोय जा तन की झाईं पड़े श्याम हरित दुति होय हिमांशु यह टिप्पणी यहीं रहेगी ताकि सनद रहे आपको और समस्त परिवार को होली की रंग भरी शुभकामनाएं!
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महोदय, यह कविता प्रख्यात कवि नागार्जुन की है और इसका शीर्षक है-' गुलाबी चूड़ियाँ ' | पुराने कवियों और उनकी कृतिओं को उजागर करना अच्छी बात है, पर अपने नाम से ऐसा करना कतई ठीक नहीं | निवेदन है कि दूसरों की रचनाएँ प्रकाशित करते समय पाद टिप्पणी में रचना और रचनाकार का नामोल्लेख कर दिया करें | क्षमा करें, ऐसे प्रकाशन से तकलीफ होती है |
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पार्थ चटर्जी ने १ ९ ७ ५ में प्रकाशित ‘ बंगाल: एक जातीयता का उदय और विकास ' (सोशल साइंटिस्ट, खंड चार, अंक १), शीर्षक अपने एक लेख की पाद टिप्पणी में लिखा है कि उपरोक्त विशेषताएं जिन्हें स्टालिन ने दुर्भाग्य से आधुनिक राष्ट्र अथवा जाति (रामविलास जी के शब्दों में ‘ महाजाति ' की विशेषताएं बताया है, वे सही अर्थों में ‘ जातीयताओं ' (लघुजातियों) पर ही लागू होतीं हैं.