रानी सती ” नाम इसी कारण से प्रसीध हुआ | घोड़ी झुनझुनु गाँव में आकर रुक गयी | भस्म को भी वहीं पघराकर राणा ने घर में जाकर सारा वृतांत सुनाया | ये सब सुनकर माता पिता भाई बहिन सभी शोकाकुल हो गये | आज्ञनुसार भस्म की जगह पर एक सुंदर मंदिर का निर्माण कराया | आज वही मंदिर एक बहुत बड़ा पुण्य स्थल है, जहाँ बैठी माँ “ रानी सती दादी जी ” अपने बच्चो पर अपनी असीम अनुकंपा बरसा रही है | अपनी दया दृष्टि से सभी को हर्षा रही है |
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(ख) हमारे शास्त्रों एवं लोक-संस्कृति दोनों के अनुसार ब्रह्माजी के कमण्डलु से, शिवजी की जटाओं से होती हुई भगीरथ जी के रथ के पीछे चली धारा भागीरथी, विष्णुपदी होने से बद्रीविशाल के चरणों को छूती धारा अलकनंदा, अलकनंदा पर स्थित पंचप्रयाग (विष्णु प्रयाग, नन्द प्रयाग, कर्ण प्रयाग, रुद्र प्रयाग तथा देव प्रयाग) तथा इन प्रयागों पर मिलने वाली गंगाजी की प्रमुख धाराएं (क्रमशः धौली (विष्णु) गंगा, नंदाकिनी, पिण्डर, मंदाकिनी तथा भागीरथी) ये सभी अत्यन्त महत्वपूर्ण पुण्य स्थल / धाराएं हैं।