१ ९ ६ ४ में विश्व हिन्दू परिषद् की स्थापना करके संघ ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और हिन्दू पुनरुत्थानवाद की राजनीति के स्पेस में काम करना शुरू कर दिया.
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हमें एक साथ रहते हुए राष्ट्र को एक सूत्र में (नैतिकतावादी धार्मिक पुनरुत्थानवाद के सूत्र में!) पिरोना है, वरना पाकिस्तान हमारे देश को हड़प जायेगा।
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आज के भारत में इस हिन्दू पुनरुत्थानवाद और अन्धराष्ट्रवाद के कई शेड्स काम कर रहे हैं, जिनके आत्मगत और वस्तुगत प्रतिक्रियावाद की मात्रा, गुण और स्तर अलग-अलग हैं।
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वे इन क्रियाओं को महज धार्मिक, आध्यात्मिक उपलब्धियों का अंग मानकर कुछ इस तरह पेश आते हैं कि उनका आचरण धर्म को, ईश्वर को, पुनरुत्थानवाद को सहायता पहुँचाता नजर आता है।
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कृष्णमोहन की विश्लेषण शैली की यह विशेषता है कि वे पुनरुत्थानवाद या नियतिवाद की ओर दबा रुझान भी नहीं दिखाते और इस मानदण्ड पर वे मार्क्सवाद की मनमानी व्याख्या से भी सहमति नहीं रखते।
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राष्ट्रवादियों द्वारा भारत के अतीत की जो खोज की गयी, उसने देश के इतिहास के अनेक पक्षों को उजागर किया, किंतु साथ ही पुनरुत्थानवाद के कतिपय प्रबल तत्वों को भी उछाला.
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इसकी एक वजह तो यही थी कि हिन्दी प्रदेश के नवजागरण ने जब तक होश संभाला तब तक भारतीय नवजागरण में उदारवाद की कार्यसूची, पुनरुत्थानवाद और सम्प्रदायवाद के भारी दबाव में आ चुकी थी।
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वे इन क्रियाओं को महज धार्मिक, आध् यात्मिक उपलब्धियों का अंग मानकर कुछ इस तरह पेश आते हैं कि उनका आचरण धर्म को, ईश्वर को, पुनरुत्थानवाद को सहायता पहुँचाता नजर आता है।
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दूसरी बात यह कि उस समय का हिन्दू पुनरुत्थानवाद उदार धार्मिक सुधारवाद से प्रभावित था और सम्मिलनकारी प्रजाति का था ; आज का हिन्दू पुनरुत्थानवादी राष्ट्रवाद वास्तव में प्रतिक्रियावादी और जनविरोधी ही हो सकता है।
50.
धार्मिक पुनरुत्थानवाद के जो मूल्य महाराष्ट्र की राजनीतिक संस्कृति का स्वतन् त्रता आन्दोलन के समय से हिस्सा रहे हैं, वे मूल्य अण्णा हज़ारे के चिन्तन और व्यवहार में गहराई से जड़ जमाये हुए हैं।