मध्य पुरापाषाण काल के आसपास मृत्यु पश्चात जीवन मे विश्वास के साक्ष्य कब्र एवं अन्तिम संस्कार के रूप मे मिलते है।
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अगर हम प्रागैतिहासिक काल में झाँककर देखें तो इलाहाबाद और मिर्जापुर के मध्य अवस्थित बेलनघाटी में पुरापाषाण काल के पशु-अवशेष प्राप्त हुए हैं।
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पुरापाषाण काल, मध्यपाषाण काल एवं नवपाषाण काल जो मानव इतिहास के आरम्भ (२५ लाख साल पूर्व) से लेकर काँस्य युग तक फ़ैला हुआ है।
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निम्न पुरापाषाण काल के मूठदार छुरे जिसकी नोक चोंच के आकार की है, इन्द्रावती, नारंगी और कांगेर नदियों के किनारे मिले हैं।
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पुरापाषाण काल, मध्यपाषाण काल एवं नवपाषाण काल जो मानव इतिहास के आरम्भ (२५ लाख साल पूर्व) से लेकर काँस्य युग तक फ़ैला हुआ है।
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शिकारी-खाद्य संग्रहक सामाजीक व्यवस्था पुरापाषाण काल मे जन्मी एक प्रकार की सामाजीक व्यस्था थी जिसमे मनुष्य छोटे समुहो मे घुमते हुए खाद्य सामग्री संग्रहित करते थे।
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भारत मे पुरापाषाण काल के अवशेष तमिल नाडु के कुरनूल, कर्नाटक के हुँस्न्गी, ओडिशा के कुलिआना, राजस्थान के डिडवाना और मध्य प्रदेश के भीमबेटका मे मिलते है।
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भारत मे पुरापाषाण काल के अवशेष तमिल नाडु के कुरनूल, कर्नाटक के हुँस्न्गी, ओडिशा के कुलिआना, राजस्थान के डिडवाना और मध्य प्रदेश के भीमबेटका मे मिलते है।
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इनमें बहुत से चित्र तो पांचवीं से आठवीं शताब्दी के मध्य आदिवासियों द्वारा बनाए गए हैं, किंतु कई चित्र करीब दस हजार वर्ष पुराने पुरापाषाण काल के कहे जाते हैं।
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जीवश्मों से निर्मित्त पुरापाषाण काल के कुछ ऐसे दाने प्राप्त हुए हैं जिनके संबंध में विश्वास किया जाता है कि वे उस काल में मनुष्यों द्वारा गुरियों की भाँति प्रयुक्त होते थे।