3. समाजवाद वह सामाजिक व्यवस्था है जिसके अंतर्गत जीवन और समाज के सभी साधनांे पर संपूर्ण समाज का स्वामित्व होता है-जिसका उपयोग पूर्ण समाज के कल्याण और विकास की भावना को लक्ष्य करके किया जाता है।
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विकास करने और आगे बढ़ने के नाम पर एक प्रकार की औपचारिकता का चोला सम् पूर्ण समाज ने ओढ़ रखा है, जिसके अन् दर झांकने पर न तो विकास दिखाई देता है और ना ही विकास के लिए सुसंगत कार्यनीतियां।
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सामान्य शिक्षा प्रदान प्रदान कर पूर्ण समाज को शिक्षित कराना | 6) धार्मिक विकास के संवर्धन के लिए अलग अलग भाषाओं में magzines, पत्रिकाओं और अन्य प्रकाशनों को प्रकाशित कर दूषित मानिसिकताओ का बदलाव करना और सही शांतिमय जीवन सीखना |
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(6) प्रत्येक देशवासियों पर अनिवार्य है कि वह अपनी क्षमता और उपलब्धी के अनुसार देश को लाभ पहुंचा, देशवासियों में जाग्रूगता उत्पन्न करे, अपने धनदौलत से देश की सेवा करे, भूमिपूत्रो को सही ज्ञान दे कर उन्हें लाभ पहुंचाए, ताकि पूर्ण समाज प्रेम, मेल जौल और सहयोग के वातावरण में सुख और शांति के साथ जीवन बीताए।
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ऐसे युग में जहां ज्ञान और तथ् य आर्थिक राजनैतिक और सांस् कृतिक आदान-प्रदान के लिए औजार हैं, देश में सुदृढ़ और रचनात् मक मीडिया की मौजूदगी व् यष्टियों, सम् पूर्ण समाज, लघु और वृह्त व् यवसाय और उत् पादन गृहों, विभिन् न अनुसंधान संगठनों निजी क्षेत्रों तथा सरकारी क्षेत्रों की विविध आवश् यकताओं को पूरा करने में महत् वपूर्ण है।