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पेरेस्त्रोइका उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
41.मजबूत व्यवस्था और राजनीति, अर्थव्यवस्था व प्रशासनिक तंत्र पर सख्त सरकारी नियंत्रण, जो किसी भी तरह की आलोचना से परे था, गोर्बाचेव द्वारा पेरेस्त्रोइका (पुनर्निमाण) और ग्लॉसनोस्त (उदारता) नामक सुधारों के तहत उदारीकृत किया गया था.

42.जनाब इस तरह कोई भला होता है ब्लॉगिंग का जिस तरह अजय कुमार झा और अविनाश वाचस्पति ने सीधा-सच्चा सोच लिया था...इसके लिए तो क्रांतिकारी ग्लास्नोस्त और पेरेस्त्रोइका की ज़रुरत होती है...अब ये झा या वाचस्पति जैसे प्राणी क्या जानें कि ग्लासनोस्त और पेरेस्त्रोइका क्या होता है...

43.जनाब इस तरह कोई भला होता है ब्लॉगिंग का जिस तरह अजय कुमार झा और अविनाश वाचस्पति ने सीधा-सच्चा सोच लिया था...इसके लिए तो क्रांतिकारी ग्लास्नोस्त और पेरेस्त्रोइका की ज़रुरत होती है...अब ये झा या वाचस्पति जैसे प्राणी क्या जानें कि ग्लासनोस्त और पेरेस्त्रोइका क्या होता है...

44.तो जितना भी हो सकेगा मैं लिखती रहूंगी. कम से कम ये पल मेरे खजाने में सजे रहेंगे.वोरोनेज़ से फाऊंडेशन कोर्स के बाद मॉस्को में मेरे पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री का पाठ्यक्रम पांच साल (१९९१-१९९६)का था. और पेरेस्त्रोइका के बाद रूस का चेहरा तीव्रता से बदल रहा था.

45.पेरेस्त्रोइका के समय और उसके बाद उस देश के विघटन के समय वहाँ के सामाजिक, सांस्कृतिक, और थोडा बहुत राजनैतिक बदलावों को एक छात्र के रूप में मैंने जैसा अनुभव किया बस उसी को शब्दों में ढालकर पाठकों तक पहुंचाने की छोटी सी कोशिश है ये पुस्तक.

46.सोवियत संघ एक बहुत ही केन्द्रित देश था और जब सोवियत साम्यवादी पार्टी के महासचिव मिखाइल गोर्बाचोफ ने १९८० के दशक के अंत में प्रशासनिक व्यवस्था सुधारने के लिए पेरेस्त्रोइका और ग्लास्नोस्त​नामक कार्यक्रमों के अंतर्गत इन गणतंत्रों को थोड़ी ढील दी तो उन्होंने जल्दी ही अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी और सोवियत संघ टूटकर बिखर गया।

47.भोजन के बाद के सत्र में हम क्रांति के बाद के सोवियत संघ के बारे में, वहाँ अपनाई गईं औद्योगिक-आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक नीतियों के बारे में, दूसरे विश्वयुद्ध, फासीवाद से जंग, अंतरराष्ट्रीयतावाद, उनकी उपलब्धियों और गलतियों के बारे में, ग्लासनोस्त और पेरेस्त्रोइका, और सोवियत संघ के बिखराव और वहाँ के आज के हालात के बारे में बात करेंगे।

48.इस उपन्यास में राष्ट्र को परिभाषित करते हुए लेखिका पाठकों के सम्मुख कुछ सवालों के जरिये हकीकत को उकेरती है, इराक के ऊपर अमेरिका का आक्रमण किसकी इच्छा से हुआ था जार्ज बुश या अमेरिका की? गर्बाचोव न होते तो पेरेस्त्रोइका संभव हो पाती क्या रूस में? इन बातों से यह जाहिर होता है राष्ट्र नामक किसी भी चीज का कोई अस्तित्व नहीं है।

49.बहरहाल, गोर्बाचेव की पेरेस्त्रोइका के असर में सीपीआईएमएल-लिबरेशन के भीतर शुरू हुई एक बहस का नतीजा यह निकला कि 1988 के अप्रैल-मई में वहां जनमत से एक साथ कई लोग-उसका इंजन समझे जाने वाले पार्टी पॉलिट ब्यूरो मेंबर प्रसन्न कुमार चौधरी, बोकारो की मजदूर पृष्ठभूमि से आए पत्रकार जगदीश और इलाहाबाद से ही गए कला संपादक प्रमोद सिंह (फिलहाल अजदक) एक साथ पत्रिका छोड़कर चले गए थे।

50.ब हरहाल, गोर्बाचेव की पेरेस्त्रोइका के असर में सीपीआईएमएल-लिबरेशन के भीतर शुरू हुई एक बहस का नतीजा यह निकला कि 1988 के अप्रैल-मई में वहां जनमत से एक साथ कई लोग-उसका इंजन समझे जाने वाले पार्टी पॉलिट ब्यूरो मेंबर प्रसन्न कुमार चौधरी, बोकारो की मजदूर पृष्ठभूमि से आए पत्रकार जगदीश और इलाहाबाद से ही गए कला संपादक प्रमोद सिंह (फिलहाल अजदक) एक साथ पत्रिका छोड़कर चले गए थे।

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