पैतृक धन किसी नाकारे के लिए चिकित्सा संस्थान अथवा नामचीन अभियांत्रिकी संस्थान की सीट की तथा स्वजन की राजनैतिक प्रभुता सत्ता के आस्वाद की और ऐसी ही बहुविध फंदोलियां बहुविध श्रेष्ठताओं की प्राप्तियों का कारण बन जाया करती हैं! भूला बिसरा देशज शब्द याद आया.ऐसे फंदोलिये अब आम हो गए है, हर गली नुक्कड़ में मिलेंगे, लेकिन अब ये केवल आम और बेर ही नहीं तोड़ते है बल्कि प्रगति की राह में दीवार भी खड़े करते है.अब ऐसे फंदोलियो से उम्मीद रखना रेत का महल बनाने जैसा ही है ना?