खासकर पैत्तिक दस्तों के लिये तो अत्यन्त ही लाभदायक चीज है कच्चे करोंदा भूख को बढ़ाते है, भारी होते है, मल को रोकते है और रूची को उत्पन्न करते है और पके हुए हल्के, रीगल, पित्त, रक्त, पित्त त्रिदोष और विष तथा वात विनाशक है।
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आमबद्धावस्था में पीड़ा उठने पर लवणभास्कर चूर्ण, बृ. अग्मिमुख चूर्ण, शूलहरण योग प्रभृति का अनुपान विशेष से सेवन हितकर है, किन्तु पैत्तिक शूलप्रबल होने पर और साथ-साथ पिपासा, दाह हो तो रोग की पहली अवस्था में मधु केसाथ त्रिफला क्वाथ या गुड़, मधु, चीनी के सहयोग से शतावर्यादि क्वाथ का पानकराना चाहिये.
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पैत्तिक बुखार में आंवले के साथ काढा बनाकर और कफज ज्वर में त्रिफला, पटोल पत्र कुटकी, पिप्पली मूल के साथ काढा बनाकर शहद के साथ प्रयोग करने से लाभ मिलता है I ये तो कुछ चुनिन्दा नुस्खे हैं जिनको बताने का मकसद इस वनस्पति के महत्व को उजागर करना मात्र है …