किसी परिवार का, उसके शुभचिन्तकों का अपनी परम्परा को पोषित करना, उसका संवर्द्धन करना तो समझ में आता है किन्तु सरकारी अमले का उस परम्परा को देखना, उसका संरक्षण करना समझ से परे है।
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पहले इसके बीज आपको आत्मा में बोने पड़ते हैं, हिम्मत की खाद से इसे पोषित करना पड़ता है और मेहनत के पानी से इसे सींचना पड़ता है, तब जाकर वह सालों बाद फ़ल देने लायक होता है.
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मौजूदा बाज़ारवाद को सिद्धांतवादी, आत्मसम्मानी और अभिमानी दिलीप कुमार जैसे प्रतीकों की जरूरत नहीं है, बल्कि अमिताभ बच्चन जैसे मौकापरस्त, शातिर, अनैतिक और समझौतावादी जैसे उन मूल्यों से भरे प्रतीकों एवं पात्रों की जरूरत है, जिन मूल्यों को बाज़ार पोषित करना चाहता है।
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मौजूदा बाजारबाद को सिद्धांतवादी] आत्मसम्मानी और अभिमानी दिलीप कुमार जैसे प्रतीकों की जरूरत नहीं है बलिक अमिताभ बचचन जैसे मौकापरस्त्] शातिर] अनैतिक और समझौतावादी जैसे उन मूल्यों से भरे प्रतीकों एवं पात्रों की जरूरत है जिन मूल्यों को बाजार BR > पोषित करना चाहता है।
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सच्चा प्रेम समर्पण और बलिदान सिखाता है, लेकिन किसी से आकर्षित होकर उस जीते-जागते व्यक्ति को अपनी “ जागीर ” समझ लेना और अनावश्यक अधिकार जाताना, फिर दूरी आने पर, मन में नफरत को पोषित करना और प्रतिशोध की युक्तियाँ सोचते रहना ही Obsessive love है ।
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कोई भी काम एक दिन में सफल नहीं होता दरअसल यह तो एक पेड़ जैसा होता है पहले इसके बीज आपके आत्मा में बोना पड़ता है, हिम्मत की खाद से इसे पोषित करना पड़ता है और मेहनत के पानी से इसे सींचना पड़ता है तब जाकर वह सालों बाद फल देने लायक होता है.
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मुंबई के आजाद मैदान में एकत्रित भीड़ का बांग्लादेशी घुसपैठियों या म्यांमारी रोहयांग मुसलमानों से क्या रिश्ता है और उन्हें इन विदेशियों के समर्थन में आंदोलन करने की छूट क्यों दी गई? इस देश में राष्ट्रहित की बात करना सेक्युलर मापदंड में जहां गुनाह है, वहीं इस्लामी चरमपंथ को पोषित करना सेक्युलरवाद की कसौटी बन गया है।
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उन्होंने बताया कि वे NRN को भगवान का दर्जा देते हैं, क्योंकि उनकी किसी से भी तुलना करना, अपमान करने जैसा है, किसी भी व्यक्ति द्वारा डेढ़ लाख कर्मियों में अपने खुद के गुणों को पोषित करना और उनके ऊपर कंपनी चलाना आज के इस युग में बहुत ही कठिन है, परंतु NRN ने करके बताया ।
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वैसे प्रकृति ने हर मनुष्य के अन्दर किसी न किसी प्रतिभा का बीज रखा होता है | मनुष्य को उस बीज को जानना है, उसे पहचानना है | उसे सींचना और पोषित करना अति आवश्यक है | अपनी प्रतिभा को उचित आयाम देने के लिए आपका लक्ष्य और कार्यक्रम स्पष्ट होना चाहिए, साथ ही आप में लगन,मेहनत, निष्ठा और इमानदारी की कमी भी नहीं होनी चाहिए |
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यहा की सिस्टम में जड़ बना चुका हैं और दूसरी समस्या हैं बढ़ती आबादी को पोषित करना दूसरी समस्या से निपटना नामुमकिन हैं क्योकि इसके लिए प्रकर्टिक संसाधन चाहिए जो की आबादी के अनुसार उपलब्ध नही हैं जहा तक अरब देशो की बात हैं तो उनके पास कच्चे तेल का वो बेशक़ीमती ख़ज़ाना हैं की वो दौलत के समंदर में हैं लेकिन भारत के पास नही हैं जवाब दें