ईश्वर ने प्रकृति की व्यवस्था कर दी है, एक नियम बना दिया है, जीवन-मृत्यु इसी नियम के अंदर है, ईश्वर नियम से बंधे हैं ।
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मगर भूख प्यास की तरह काम भी सहज स्वभाविक व जीवन के अस्तित्व को टिकाए रखने के लिए अनिवार्य है, यह प्रकृति की व्यवस्था है.
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सवाल उठता है कि क्या इससे समाज, देश, विश्व व प्रकृति की व्यवस्था चल पाएगी? मीडिया पूरी तरह से स्वतंत्र होना चाहता है।
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लेकिन शिक्षा की विनाशकारी व्यवस्था ने आधुनिक मनुष्य की बुद्धि को जिस प्रकार जड़ कर दिया है उसने प्रकृति की व्यवस्था में घातक दोष पैदा कर दिया है.
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लेकिन शिक्षा की विनाशकारी व्यवस्था ने आधुनिक मनुष्य की बुद्धि को जिस प्रकार जड़ कर दिया है उसने प्रकृति की व्यवस्था में घातक दोष पैदा कर दिया है.
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यह मानव प्रकृति की व्यवस्था है लेकिन मानवता के इतिहास में ऐसे अनूठे मामले भी सामने आए हैं जिसमें पिता और मां अपनी ही संतान के हत्यारे बन गए हैं।
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जैसे प्रकृति की व्यवस्था अभिन्न है, हर जर्रा हर जर्रे का मायका या ससुराल है, वैसे ही सभी स्त्री-पुरुष एक नैसर्गिक व्याकरण की संज्ञाएं, विशेषण और क्रियापद बन जाते हैं।
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जैसे प्रकृति की व्यवस्था अभिन्न है, हर जर्रा हर जर्रे का मायका या ससुराल है, वैसे ही सभी स्त्री-पुरुष एक नैसर्गिक व्याकरण की संज्ञाएं, विशेषण और क्रियापद बन जाते हैं।
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यह मानव प्रकृति की व्यवस्था है लेकिन मानवता के इतिहास में ऐसे अनूठे मामले भी सामने आए हैं, जिसमें पिता और मां अपनी ही संतान के हत्यारे बन गए हैं।
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जैसे प्रकृति की व्यवस्था अभिन्न है, हर जर्रा हर जर्रे का मायका या ससुराल है, वैसे ही सभी स्त्री-पुरुष एक नैसर्गिक व्याकरण की संज्ञाएँ, विशेषण और क्रियापद बन जाते हैं।