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प्रकृष्ट उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
41.प्राचीन नैय्यायिक की दृष्टि में असाधारण कारण का परिष्कार क्रिया की सिद्धि में जो प्रकृष्ट उपकारक हो उसे करण कहकर किया गया है, जो यहाँ इन्द्रियार्थ सन्निकर्ष होता है।

42.प्र उपसर्गपूर्वकयज्धातुसे प्रयाग शब्द निष्पन्न होता है-उत्कृष्टो यागोयत्र स: प्रयाग: प्र का अर्थ है प्रकृष्ट तथा याग शब्द का अर्थ है यज्ञ, अत:उत्कृष्ट यज्ञ के कारण ही प्रयाग शब्द निष्पन्न है।

43.वह सुषुप्ति जिसका स्थान है तथा जो एकभूत प्रकृष्ट ज्ञानस्वरूप होता हुआ ही आनन्दमय, आनन्द का भोक्ता और चेतनारूप मुख वाला है वह प्राज्ञ ही आत्मा का तीसरा पाद है.

44.क्योकि इन सबका सम्बन्ध प्रपञ्चनात्मक (प्र-अर्थात प्रकृष्ट या बड़े, पञ्च-क्षिति, जल, अग्नि, पाषाण एवं वायु, आत्मक-अर्थात घिरा हुआ) तत्वों से भरा हुआ है.

45.यही कार्य जब किसी विशेष सुव्यवस्थित, सुनियोजित, संतुलित एवं क्रमिक रूप में विशाल स्तर पर होता है तो उसे प्र (प्रकृष्ट या बड़ा) कृति या प्रकृति कहते है.

46.पार ब्रह्म परमेश्वर ने अपनी प्रकृष्ट रचना “ प्रकृति ” के सहारे प्रत्येक अलक्ष्य या परिलक्ष्य प्रक्रिया या संचार के पूर्ण विकाश एवं स्थायित्व के लिये ठोस, उचित एवं पर्याप्त प्रबंध कर रखा है.

47.फिर वे कहने लगे-' कौन समुद्र को लाँघकर समस्त वानरों को जीवन-दान देगा?' वानरों की जीवन-रक्षा और श्रीरामचन्द्र जी के कार्य की प्रकृष्ट सिद्धि के लिये पवन कुमार हनुमान जी सौ योजन विस्तृत समुद्र को लाँघ गये।

48.जो मूर्ख (परीक्षा द्वारा) प्रकृष्ट वक्ता का निर्णय किये बिना प्रश्न करता है, वह अधम प्रश्नकर्ता है और वह आत्मज्ञानरूप महान अर्थ का पात्र नहीं हो सकता अर्थात् उसे कभी तत्त्वज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता।

49.फिर वे कहने लगे-' कौन समुद्र को लाँघकर समस्त वानरों को जीवन-दान देगा? ' वानरों की जीवन-रक्षा और श्रीरामचन्द्र जी के कार्य की प्रकृष्ट सिद्धि के लिये पवन कुमार हनुमान जी सौ योजन विस्तृत समुद्र को लाँघ गये।

50.इन सभी शब्दों में ' प्र ' उपसर्ग है जिसका अर्थ होता है प्रकृष्ट या जो पहले से है, जैसे प्र + कृति = प्रकृति-अर्थात पहले से जो था अर्थात ब्रह्म, उसकी कृति है यह प्रकृति अर्थात जगत।

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