हालांकि करीमगंज में पालाथल क्षेत्र में सीमा स्तंभ वर्षों पूर्व 1962 में बनवाये गये थे, क्षेत्र की रक्षा करने में सरकार की अपराधिक विफलता से विदेशी नागरिक क्षेत्र का अतिक्रमण करने में सफल रहे और बाद में बांग्लादेश ने दावा किया कि क्षेत्र में इसके प्रतिकूल कब्जे के तहत हुई थी.
42.
बल्कि आम जनता के अधिकारों को नकारने के आधार पर स्वयं को स्वामी माना है और दुकानों के निर्माण की तिथि से कब्जे के आधार पर भी स्वयं को मालिक माना है किन्तु ऐसा नीचे वर्णित विधि व्यवस्थाओं के प्रकाश में प्रतिकूल कब्जे के आधार पर मालिक माने जाने के लिये पर्याप्त नहीं है।
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वादीगण की ओर से बतौर पी0डब्लू0-1 वादी राधेश्याम द्विवेदी ने स्वयं को सशपथ परीक्षित कराया है और अपनी मुख्य परीक्षा में वादपत्र के अभिकथनों का समर्थन करते हुये कहा है कि विवादित जमीन पर वह 30 वर्ष पूर्व से निर्माण कर वह मालिक काबिज है और प्रतिकूल कब्जे के आधार पर मालिक हो चुका है।
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प्रतिकूल कब्जे के आवश्यक तत्व उपरोक्त वर्णित के अनुसार जिस व्यक्ति के विरूद्व प्रतिकूल कब्जे का दावा किया जायेगा उसे वास्तविक स्वामी माना जायेगा और उसी वास्तविक स्वामी के विरूद्व प्रतिकूल एवं खुले हुये कब्जे को साबित भी किया जायेगा परन्तु दोनो ही वादों में वादीगण द्वारा प्रतिवादीगण को प्रश्नगत सम्पत्ति / आराजी का मालिक नहीं माना है।
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प्रतिकूल कब्जे के आवश्यक तत्व उपरोक्त वर्णित के अनुसार जिस व्यक्ति के विरूद्व प्रतिकूल कब्जे का दावा किया जायेगा उसे वास्तविक स्वामी माना जायेगा और उसी वास्तविक स्वामी के विरूद्व प्रतिकूल एवं खुले हुये कब्जे को साबित भी किया जायेगा परन्तु दोनो ही वादों में वादीगण द्वारा प्रतिवादीगण को प्रश्नगत सम्पत्ति / आराजी का मालिक नहीं माना है।
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वादी प्रतिकूल कब्जे के आधार पर वाद लेकर नहीं आया है बल्कि वाद पत्र में उसने विवादित फड़ और उसकी जमीन का स्वयं को किरायेदार होना बताया है, परन्तु निम्न न्यायालय में वादी यह तथ्य सिद्ध करने में असफल रहा है कि वह विवादित फड़ और उसकी जमीन का सितम्बर 90 के बाद किरायेदार रहा हो।
47.
ा2005 (1) ए. डब्लू. सी. 493 (एल. बी.) प्र म नारायण व अन्य बनाम शिवपती व अन्य में कहा गया है कि प्रतिकूल कब्जे के आधार पर स्वत्व के परिपूर्ण करने के लिये कब्जा वास्तविक स्वामी के विरूद्व प्रतिकूल एवं स्वतंत्र होना चाहिये, मात्र लम्बे समय तक कब्जे में होना उसे परिपूर्ण नहीं बनाता मूलवाद सं0-1170/1996 है।
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यदि पट्टा विलेख शून्य दस्तावेज मान भी लिया जाए तो पक्षकारों के आचरण से भू-स्वामी और किरायेदार का सम्बन्ध स्थापित हुआ है और एक बार यह सम्बन्ध स्थापित होने के बाद किरायेदार अपनी हैसियत छोड़ते हुए अपने को प्रतिकूल कब्जे वाला व्यक्ति घोषित नहीं कर सकता है और वैसे भी दिनांक 23-3-89 को उक्त पट्टा निरस्त किया जा चुका है।
49.
अपीलार्थी-वादीगण के विद्धान अधिवक्ता द्वारा कुछ नजीरें प्रस्तुत की गई हैं और यह कहा गया है कि यदि कोई सम्पत्ति हस्तान्तरित की जाती है और हस्तान्तरण का दस्तावेज शून्य हो जाता है तो उस दस्तावेज के आधार पर हस्तान्तरित कब्जे वाली भूमि पर प्रतिकूल कब्जा माना जायेगा और प्रतिकूल कब्जे की अवधि पूर्ण होने के बाद कब्जेदार की मिलकियत परिपक्व मानी जायेगी।
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वादीगण द्वारा वादग्रस्त सम्पत्ति पर निर्माण की मूलवाद सं0-1170 / 1996 तिथि से अपना कब्जा दखल बताया गया है और कहा गया है कि प्रतिकूल कब्जे के आधार पर उनका अधिकार पूर्ण हो चुका है उन्होंने खुले तौर पर प्रतिवादीगण की जानकारी में इनका निर्माण किया है और आम जनता की कोई जानकारी में भी ऐसा किया है उनके निर्माण के विरूद्ध प्रतिवादीगण ने कभी आपत्ति नहीं की है।