| 41. | ब्रह्मलोकादि की कामनापूर्वक जो कर्म प्रतिग्रह, याजन तथा यज्ञादि किये
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| 42. | मगर प्रतिग्रह के लिए तो वह मजबूर नहीं हैं और
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| 43. | हो वह प्रतिग्रह स्वीकार न करे।
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| 44. | ब्राह्मणों को दीजिये जो प्रतिग्रहादि में प्रवृत्त हैं, मैं प्रतिग्रह
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| 45. | ' यदि प्रतिग्रह करने में सामर्थ्य भी रखता हो (अर्थात् उससे
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| 46. | परन्तु प्रतिग्रह का नाम तो कहीं भी प्रथम नहीं आया हैं।
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| 47. | अध्यायन, अध्यापन, यजन, याजन, दान और प्रतिग्रह ये षट्कर्म होते हैं,
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| 48. | स्थित होकर दान और अध्यायनादि करते और प्रतिग्रह नहीं लेते हैं।
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| 49. | इसलिए उस दशा में याजन, अध्यापन और प्रतिग्रह से जीविका करेगा।
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| 50. | राज्य भी उसी पुरोहिती, दक्षिणा या प्रतिग्रह वृत्ति के फल हैं।
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