7 विजयमोहन सिंह जी ने प्रसिद्ध विद्वान एडमंड विल्सन जी के कथन का उदाहरण देते हुए शेखर: एक जीवनी की भाषा के प्रतीकात्मक प्रयोग तथा शिल्प की प्रशंसा करते हुए आगे कहते है कि अज्ञेय की भाषा में इसी प्रकार के प्रतीकवादी उपकरण मिलते हैं।
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यह प्रतीकवादी रॉबर्ट लांगडोन और सोफी नेवीयू का अनुसरण करता है, क्योंकि वे पेरिस के लौवर संग्रहालय में एक हत्या की छानबीन करते हैं और एक षड़यन्त्र का पता लगाते हैं, जो नासरत के यीशु मसीह के मरियम मगदलीनी से शादी की संभावना कर संभावना के आसपास घूमती है.
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यह प्रतीकवादी रॉबर्ट लांगडोन और सोफी नेवीयू का अनुसरण करता है, क्योंकि वे पेरिस के लौवर संग्रहालय में एक हत्या की छानबीन करते हैं और एक षड़यन्त्र का पता लगाते हैं, जो नासरत के यीशु मसीह के मरियम मगदलीनी से शादी की संभावना कर संभावना के आसपास घूमती है.
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वैसे तो प्रतीकवादी काव्य-धारा का प्रवर्तन फ्रांसीसी रचनाकारों बॉदलेयर, वर्लेन, मलार्मे, रिम्बो, क्लाउडेल और पॉल वालेरी द्वारा हुआ, लेकिन इसका प्रभाव जर्मन कवि रिल्के, रूसी लेखक ब्लोक, आयरिश कवि यीट्स, अमेरिकन कवि हत्थॉर्न और वाल्ट व्हिटमैन आदि पर भी पडा.
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बेल्जियम प्रतीकवादी चित्रकार फ़र्नांड नोफ्फ (1858-1921) द्वारा द केयरेस (1896), ईडिपस और स्फिंक्स और एक महिला के सिर के साथ प्राणी चित्रण और चीता शरीर (अक्सर एक तेंदुआ के रूप में गलत समझा जाता है) के मिथक का प्रतिनिधित्व करता है.
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सभी मित्रों को शुभ दीपावली-' पन्च पर्व ' | कुबेर इस रचना में समाज का पूजीवादी वर्ग का प्रतीक है और धन्वंतरी चिकित्सा पद्धातियों से जुड़े वर्ग का | आज दोनों एक दूसरे का पर्याय हो गये हैं | देखिये एक सार्थक प्रतीकवादी दोहा-गीत अभिधा, लक्षणा-व्यन्जना तीनों शब्द-शक्तियों में!
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लेकिन इस पूरी खोखली प्रतीकवादी राजनीति का चरित्र दलित मज़दूर वर्ग के सामने आज के समय में बिल्कुल साफ़ हो जाना चाहिए क्योंकि दलित मज़दूरों के नरसंहार, उत्पीड़न, उनके जीविकोपार्जन से जुड़े ठोस बुनियादी मसले उनके लिए या तो मुद्दे नहीं हैं, या फिर महज़ रस्म-अदायगी के मुद्दे हैं।
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यद्यपि दुनिया की कतिपय संस्कृत भाषाओं की कविता, विचारों की इस संक्रान्ति से गुजर चुकी है, और उनके अनुभव हमारे आगे प्रत्यक्ष हैं, लेकिन क्या हिन्दी की नयी कविता भी टी. एस. इलियट की तर्जुमानी है-अथवा लेमार्ले या एजारा पाउण्ड का प्रतीकवादी नमूना? इस प्रश्न का उत्तर कई तरह से दिया जाता है, इसलिए आज के कवि को सामाजिक जीवन से तटस्थ मान लेना दुराग्रह के अतिरिक्त और क्या होगा।
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कवि अथवा कवि-स्वभाववाले नाटककार ही प्रायः प्रतीकवादी नाट्य लेखन की ओर अधिक प्रवृत्त हुए जिनमें मॉरिस मेटरलिंक (1862-1949), रोस्ताँ (1868-1918), हॉफमैन्स्थल (1873-1928), हाउप्टमान (1862-1946), क्लॉडेल (1868-1955), यीट्स (1865-1939), आस्द्रेयव (1871-1919), ऑस्कर वाइल्ड (1854-1900), लोर्का (1899-1936) आदि उल्लेखनीय हैं।