श्रीवल्लभ-नख-चन्द-छटा बिनु सब जग मांझ अधेरो॥ ' श्रीवल्लभ के प्रताप से प्रमत्त कुम्भनदास जी तो सम्राट अकबर तक का मान-मर्दन करने में नहीं झिझके-परमानन्ददासजी के भावपूर्ण पद का श्रवण कर महाप्रभु कई दिनों तक बेसुध पड़े रहे।
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कोई सोने की डिब्बी में, कोई चाँदी के और कोई हाथी दाँत के छोटे छोटे डिब्बों में वह पुनीत भस्म भर ले गये! एक मुट्ठी भस्म के लिये हज़ारों स्त्री पुरूष प्रमत्त हो उठे थे.
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तुम्हारे पर्वतीयप्रदेश के उन्मादित समीकरण में एक रिपु यहाँ की नारियों के कोमल अंगों एवं मुक्तलास्यों मे प्रमत्त हो गया हैं, ऐसे समय में महाअनर्थ हो रहा हैं, इसलिए वीर पुत्रोंजागो, महाकाल को जगाओ ताकि शत्रु तुम्हारी जननी को स्वतंत्र कर दें.
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७-जो जो जन राजनीति वा प्रजा के अभीष् ट से विरुद्ध, स्वार्थी, क्रोधी और अविद्यादि रोगों से प्रमत्त होकर राजा और प्रजा के लिये अनिष् ट कर्म्म करे, वह वह इस सभा का सम्बन्धी न समझा जावे ।
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वाह क्या कहना इसके बहिश्त की प्रशंसा कि वह अरबदेश से भी बढ़कर दीखती है! और जो मद्य मांस पी-खाके उन्मत्त होते हैं इसलिए अच्छी-अच्छी स्त्रियाँ और लौंडे भी वहाँ अवश्य रहने चाहिए नहीं तो ऐसे नशेबाजों के शिर में गरमी चढ़ के प्रमत्त हो जावें।
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प्रियाओं के साथ बलदेव जी उस सुगन्धमयी वारूणी (मधु) का पानकर रास-विलास में प्रमत्त हो गये जल-क्रीड़ा तथा गोपियों की पिपासा शान्त करने के लिए उन्होंने कुछ दूर पर बहती हुई यमुना जी को बुलाया, किन्तु न आने पर उन्होंने अपने हलके द्वारा यमुना जी को आकर्षित किया।
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मद्य भी मांस खाने का ही कारण है, इसी से यहां संक्षेप से थोड़ा-सा लिखते हैं-'' ' प्रमत्त-'' ' कहो जी! मांस छूटा, सो छूटा, परन्तु मद्य में तो कोई भी दोष नहीं है? '' ' शान्त-'' ' मद्य पीने में भी वैसे ही दोष हैं जैसे कि मांस खाने में ।
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तिन्हकर कहा करिय नहिं काना॥ राम को दशरथ-सुत से भिन्न कहने वाले अज्ञ, अकोविद्, अंध, अभागे, लंपट, कपटी, कुटिल, सपने में भी संतसभा न देखनेवाले, वेदविरूद्ध वचन बोलने वाले, लाभहानि विवेकरहित, अंधे, अगुनसगुन-विवेकरहित, कल्पित वचन बकने वाले, मायाग्रस्त होकर घूमनेवाले, बातूनी, भूतग्रस्त, बिनाविचारे बोलनेवाले, महामोहरूपी मदिरा पीकर प्रमत्त हैं।
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दीर्घ काल तक जिस पथ का अनुसरण किया अब थोड़े से के लिए उसे छोड़कर प्रमत्त मत हो-मुझे जगा गया! अडतालीस वर्ष की साधना और माँ, आर्यिका, उपाध्याय और आचार्य का सहवास भी जो मुझमे न जगा पाया, इस नर्तकी की एक गाथा ने जगा दिया और मेरा साधक जीवन पतित होते होते बच गया! इस कारण प्रसन्नता में मैंने वह रत्न कम्बल नर्तकी को दे दिया!
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ब्राह्माजी ने अमितायु का, इंद्र ने वज्र से हत न होने का, सूर्य ने अपने शतांश तेज से युक्त और संपूर्ण शास्त्रों के विशेषज्ञ होने का, वरुण ने पाश और जल से अभय रहने का, यम ने यमदंड से अवध्य और पाश से नाश न होने का, कुबेर ने शत्रुमर्दिनी गदा से निःशंख रहने का, शंकर ने प्रमत्त और अजेय योद्धाओं से जय प्राप्त करने का और विश्वकर्मा ने मय के बनाए हुए सभी प्रकार के दुर्बोध्य और असह्य, अस्त्र, शस्त्र तथा यंत्रादि से कुछ भी क्षति न होने का वर दिया।