शिरीष भाई की आलोचना की एक बड़ी खूबी यह है कि वह एक बोझिल प्राध्यापकीय भाषा और उद्धरणों के सहारे बौद्धिकता का आतंक पैदा करने की जगह अपनी कविताओं की तरह ही गद्य में भी एक आत्मीय वातावरण रचते है.
42.
मैं अपने चिट्ठों के किस्से, अन्वेष (पुत्र) अपने गेम के क्रैक और चीट कोड के किस्से, अनुश्री(पुत्री) अपने मित्रों व सहपाठियों के शरारतों के किस्से तथा रेखा (पत्नी) अपने आस-पड़ोस व प्राध्यापकीय जीवन के किस्से एक दूसरे को सुनने-सुनाने की असफल कोशिशें करते रहते हैं।
43.
न तो वे ‘ कवियों के कवि ' हैं, जैसा कि अक्सर हिन्दी के प्राध्यापकीय आलोचक अपनी अक्षमता के कारण कह दिया करते हैं, और न वे उस तरह के ‘ जन कवि ' हैं, जिनकी कविताएँ अख़बार का काम करती हैं।
44.
मैं अपने चिट्ठों के किस्से, अन्वेष (पुत्र) अपने गेम के क्रैक और चीट कोड के किस्से, अनुश्री(पुत्री) अपने मित्रों व सहपाठियों के शरारतों के किस्से तथा रेखा (पत्नी) अपने आस-पड़ोस व प्राध्यापकीय जीवन के किस्से एक दूसरे को सुनने-सुनाने की असफल कोशिशें करते रहते हैं।
45.
प्रोफेसर पीपा केली, चिकित्सा और स्वास्थ्य विज्ञान, ऑटैगो विश्वविद्यालय के क्राइस्टचर्च स्कूल में प्रसूति एवं स्त्री रोग के हाल ही में नियुक्त सिर, 7:30 पर बुधवार 14 अप्रैल को उसे प्राध्यापकीय उद्घाटन व्याख्यान में मातृ और भ्रूण चिकित्सा में इन महत्वपूर्ण सुधार पर चर्चा करेंगे.
46.
मैं अपने चिट्ठों के किस्से, अन्वेष (पुत्र) अपने गेम के क्रैक और चीट कोड के किस्से, अनुश्री(पुत्री) अपने मित्रों व सहपाठियों के शरारतों के किस्से तथा रेखा (पत्नी) अपने आस-पड़ोस व प्राध्यापकीय जीवन के किस्से एक दूसरे को सुनने-सुनाने की असफल कोशिशें करते रहते हैं।
47.
भंगमुद्राओं का परीक्षण करते सोकल उनका नाम तक नहीं लेते हैं यहां आज भी एक घमासान मचा रहता है ऐसे में कविमन कहां बचा रहता है पर यह कोई बौद्धिक चीज़ नहीं है ज्ञानात्मक संवेदना और भावानात्मक संवेदना की प्राध्यापकीय कारीगरी की ज़द से बाहर है
48.
मैं यहाँ अपनी बात को साफ करना जरूरी समझता हूँ कि किसी को यह भ्रम नहीं होना चाहिए जो प्राध्यापक लिखे वह प्राध्यापकीय आलोचना है, आचार्य शुक्ल से लेकर कण से भी छोटे और उससे भी छोटे अति छोटे, छोटे सुकुल तक सब प्राध्यापक रहे हैं।
49.
मैं अपनी कहानियों के इस संचयन के पहले ऐसा इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि मेरी कहानियों के ‘ पाठ ' के साथ ही नहीं, स्वयं मेरे निजी जीवन के साथ भी हिंदी की प्राध्यापकीय या सत्ताकेंद्रित आलोचना तथा उनसे अनिवार्य रूप से संबंद्ध साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थानों ने यही ‘
50.
मैं अपनी कहानियों के इस संचयन के पहले ऐसा इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि मेरी कहानियों के ‘पाठ ' के साथ ही नहीं, स्वयं मेरे निजी जीवन के साथ भी हिंदी की प्राध्यापकीय या सत्ताकेंद्रित आलोचना तथा उनसे अनिवार्य रूप से संबंद्ध साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थानों ने यही ‘प्रतिशोधात्मक कार्रवाई' पिछले कई दशकों से, बार-बार की है।