इस आशा के साथ, कि समझें भाषा अपने प्यार की, प्रेयसि पहली बार लिख रहा, चिट्ठी तुमको प्यार की! बहुत बढ़िया भाव.... प्रेमिका को पहली चिठ्ठी प्यार की...
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झूम रही है धरा, ओढ़ के हरी ओढ़नी किन्तु है पिपासित बस, एक यही मोरनी इससे पहले दामिनी, नभ से दे उलाहने प्रीत बन चले आओ, प्रेयसि बुलाती है
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सहसा आ सम्मुख चुपचाप संध्या की प्रतिमा-सी मौन करती प्रेमालाप, प्रेयसि नहीं, परिचिता-सी वह कौन? कर्मों की छाया-सी गूढ़ मन की गोचर स्त्रीत्व अतीत, स्नेह रही है ढूँढ-धूमिल-सी है यद्यपि स्नेह-प्रतीती ।
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झूम रही है धरा, ओढ़ के हरी ओढ़नी किन्तु है पिपासित बस,एक यही मोरनी इससे पहले दामिनी,नभ से दे उलाहने प्रीत बन चले आओ, प्रेयसि बुलाती है बारिशों का मौसम है प्रिय! तुम चले आओ..
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स्नेहमयी तुम कौन हो? जिसकी गोद में सिर रख रोया, करुणमयी तुम कौन हो?बाल बिखेरे प्रेयसि जैसेआँख में ममता माता जैसीनेह भरा स्पर्श लिए तुम, प्रकृति सुंदरी कौन हो?जिसकी गोद में सिर रख रोया करुणमयी तुम कौन हो?
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प्रथम प्यार का, प्रथम पत्र है लिखता, निज मृगनयनी को उमड़ रहे, जो भाव ह्रदय में अर्पित, प्रणय संगिनी को, इस आशा के साथ, कि समझें भाषा प्रेमालाप की! प्रेयसि पहली बारलिख रहा, चिट्ठी तुमको प्यार की!
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स्नेहमयी तुम कौन हो? जिसकी गोद में सिर रख रोया, करुणमयी तुम कौन हो? बाल बिखेरे प्रेयसि जैसे आँख में ममता माता जैसी नेह भरा स्पर्श लिए तुम, प्रकृति सुंदरी कौन हो? जिसकी गोद में सिर रख रोया करुणमयी तुम कौन हो?
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मदिर नयन की, फूल बदन की प्रेमी को ही चिर पहचान, मधुर गान का, सुरा पान का मौजी ही करता सम्मान! स्वर्गोत्सुक जो, सुरा विमुख जो क्षमा करें उनको भगवान, प्रेयसि का मुख, मदिरा का सुख प्रणयी के, मद्यप के प्राण!
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मदिर नयन की, फूल बदन की प्रेमी को ही चिर पहचान, मधुर गान का, सुरा पान का मौजी ही करता सम्मान! स्वर्गोत्सुक जो, सुरा विमुख जो क्षमा करें उनको भगवान, प्रेयसि का मुख, मदिरा का सुख प्रणयी के, मद्यप के प्राण!
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झूम रही है धरा, ओढ़ के हरी ओढ़नी किन्तु है पिपासित बस,एक यही मोरनी इससे पहले दामिनी,नभ से दे उलाहने प्रीत बन चले आओ, प्रेयसि बुलाती है बहुत ही सुंदर दिल मेरा भी बारिश में भीगने को किया लेकिन क्या करूं ना ही तो किसी ने बुलाया और ना ही बारिश हुई बहुत अच्छी बधाइ