PMदीपेन्द्र, अपने-अपने उसूल हैं...मुझे भी और बहुत से लोगों की तरह आत्मसम्मान बहुत प्रिय है...एक फ़ालतू का इंसान मुझे अपशब्द बक जाए और मैं चुप रह जाऊं जबकि मेरी कोई गलती भी न हो तो मैं खुद को बेचैन सा महसूस करने लगता हूं...आखिर कोई मुझे अपशब्द कह गया और मैंने उसे कुछ भी नहीं कहा तो इसका मतलब तो मुझे जंग लगता जा रहा है...नहीं नहीं जब तक जान में जान है आत्मसम्मान को सुरक्षित रखा जाएगा...
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क्यों न आपके साथ बांटा जाए इसे: प्रेम प्रेम ख़ुद एक भोग है जिसमें प्रेम करने वाले को भोगता है प्रेम प्रेम ख़ुद एक रोग है जिसमें प्रेम करने वाले रहते हैं बीमार प्रेम जो सब बंधनों से मुक्त करे, मुश्किल है प्रेमीजनों को चाहिये कि वे किसी एक ही के प्रेम में गिरफ़्तार न हों प्रेमी आएं और सबके प्रेम में मुब्तिला हों नदी में डूबे पत्थर की तरह वे लहरें नहीं चोटें गिनते हैं और पहले से ज़्यादा चिकने, चमकीले और हल्के हो जाते हैं प्रेम फ़ालतू का बोझ उतार देता है, यहां तक कि त्वचा भी