प्रेमवती को पुत्र ही को देखने की लालसा थी, पर जब उनका पत्र आ गया कि इस समय मैं नहीं आ सकता, तो उसने एक लम्बी साँस लेकर ऑंखे मूँद ली, और ऐसी सोयी कि फिर उठना नसीब न हुआ! वरदान-प्रतापचन्द्र और कमलाचरण प्रतापचन्द्र को प्रयाग कालेज में पढ़ते तीन साल हो चुके थे।