पगतलियों के चुम्बन से यों मांग सजा लेती हैं राहें लग जाती है खिलने चारों ओर स्वयं फूलों की क्यारी पैंजनियों से बातें करने को लालायित हुई हवायें अपने साथ भेंट में लेकर आती गंधों भरी पिटारी-आपके शब्दकोश को नमन करने के सिवाय मेरे पास कोई रास्ता नहीं...नत मस्तक हूँ. अहसासिये, प्लीज!!
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दिल्ली में स्वर्गीय कैप्टन अर्जुन एवं श्रीमती किरण लाल जैसे बहुत से पुष्प प्रेमी रहे हैं जिन्होंने अपने मकान की छत को घास, फूलों की क्यारी, कुमुद के कुंड, लताओं और फलों के वृक्ष आदि से सजा कर सुन्दर वाटिका की संयोजना की एवं पुष्प प्रदर्शनियों में पुरस्कार भी जीते।
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जैसे आँखों की डिबिया में निंदिया और निंदिया में मीठा सा सपना और सपने में मिल जाये फरिश्ता सा कोई जैसे रंगों भरी पिचकारी जैसे तितलियाँ फूलों की क्यारी जैसे बिना मतलब का प्यारा रिश्ता हो कोई यह तो आशा की लहर है यह तो उम्मीद की सहर है खुशियों की नहर है
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हमें चुम्बक की तरह खींचते थे घने वन-लेट कर घुसते हम अपनी फूलों की क्यारी में, और तलाशते वहाँ वन की सघनता का जादू, गेंदा गुलमेंहदी और मोरपंखी के दरख्तों की छाँव में अक्सर हम सूँघते थे गेंदे की पत्तियों का रस जिससे स्फूर्ति मिलती और बुळि का होता था संचार
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कि तुम प्रयोजन हो? जानते हो-कड़ी दर कड़ी बढ़ती है प्रकृति ओज से भरी अमृत से लबालब विकसित फूलों की क्यारी सी जिसमें आते हो तुम भटकते-भ्रमर से इधर उधर और बीजते हो अगली फूलों की जमात तुम्हारा आना और जाना यह पल भर का मेरी अनादी-अनंत की गति में रह जाता एक बिंदु मात्र फिर भी...
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मैंने पहचाना फूलों को गंधों के व्याकरणों से, और बाग को पहचाना है माली के आचरणों से, बगिया की शोभा है रंग बिरंगो फूलों की क्यारी, एक रंग के फूलों को जब अलग निकाला जाता है, सिर्फ उन्हें जब राजकुमारों जैसे पाला जाता है, तब लगता है ठगा गया हूँ मैं जीवन के लेन देन में,
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हें प्रभात तेरा अभिनंदन किरण भोर की, निकल क्षितिज से उलझी ओस कणों के तन से फूलों की क्यारी तब उसको, देती अपना मौन निमंत्रण हें प्रभात तेरा अभिनंदन भौरों के स्वर हुये गुंजरित खग-शावक भी हुए प्रफुल्लित श्यामा भी अपनी तानों से,करती जैसे रवि का पूजन हें प्रभात तेरा अभिनंदन ज्योति-दान नव पल्लव पाया तम की नष्ट हुयी हैं काया गोदी में गूजी किलकारी, करती हैं तेरा ही वंदन हें प्रभात तेरा अभिनंदन विक्रम[पुन:प्रकाशित]