-सूर्यकुमार पांडेय धन-दौलत, आल-औलाद, नौकर-चाकर, बंधु-बांधव, जीते जी इनमें से जितना कुछ हासिल किया जा सकता है, वे हासिल कर चुके थे।
42.
जो मनुष्य अपने माता-पिता बंधु-बांधव अथवा गुरुजनों की हड्डियों की अस्थियां एकत्र कर उन्हें गंगा जल में प्रवाहित करे उन्हें पग-पग पर अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
43.
(मृतक के शरीर को बेकार लकड़ी अथवा मिट्टी के ढेले के समान ही निरर्थक समझकर धरती पर छोड़कर (गाड़ अथवा जलाकर) बंधु-बांधव वापस लौट जाते हैं।
44.
हालाकि इस प्रथा में विभिन्नता थी: कभी पुत्र के न होने पर एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता था तो कभी बंधु-बांधव सिहासन पर अपना अधिकार जमाते थे।
45.
यहाँ माता-पिता को पूर्व-दिशा, गुरु को दक्षिण दिशा, पत्नी को पश्चिम दिशा, बंधु-बांधव को उत्तर दिशा, दास और श्रमिक को नीचे की दिशा तथा साधु-संत को ऊपर की दिशा समझना चाहिए।
46.
पश्चिम मे विवाह चुटकियों में हो जाता है वहां किसी की शादी को लेकर मां-बाप, बंधु-बांधव ज्यादा परेशान नहीं होते, विवाह के लिये लड़का और लड़की की सहमति काफी है।
47.
जो लोग विधानबाबू के निकटतम बंधु-बांधव हैं, उन्होंने विधानबाबू में महज़ पितृपुरुष के प्रति अगाध भक्ति का ही नमूना पादुका पूजन में नहीं देखा-करुणा का एक विचित्र रूप भी देखा है।
48.
ब्राह्मण, बंधु-बांधव, परिवार के सभी सदस्यादि भक्तिपूर्वक जल, पंचामृत, चंदन, पुष्प, तुलसी पत्र, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, ताम्बूल, दक्षिणादि से पूजन करें।
49.
यहाँ माता-पिता को पूर्व-दिशा, गुरु को दक्षिण दिशा, पत्नी को पश्चिम दिशा, बंधु-बांधव को उत्तर दिशा, दास और श्रमिक को नीचे की दिशा तथा साधु-संत को ऊपर की दिशा समझना चाहिए।
50.
मेरे स्नेही बंधु-बांधव मुझे पुकार रहे हैं और मैं खुद ही इतना व्यग्र हूँ पर जो चाहे वो हो जाये तो फिर हम इंसान न होकर भगवान न हो जाएँ | अशेष धन्यवाद सहित,