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बगूला उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
41.चलती गाड़ी के लय में शरीर का गिरना, थकान और अकड़न में जिस्म का टूटना, ये सोचना कि काश पैर फैला लेने की इतनी से जगह मयस्सर हो जाती और इन्हीं सब अगड़मबगड़म के बीच मन के उजाले उड़ान का बगूला कैसे अपने सफेद पँख फैला लेता है, इसकी मीठी नीम रौशनी में नहा लेना।

42.खैर शनीचर को अलसुबह जुम्मन ने रोज की तरह बड़े तालाब के किनारे तफरीह शुरू की ही थी कि तालाब के बुर्ज पर रोशन राजा भोज के बुत से सफ्फाक रोशनी का बगूला सा उठा, मियां जुम्मन की आंखें फटी की फटी रह गईं, होश गुम होते से मालूम पड़े, आंख खुली तो देखा रात हो चुकी है, पास में एक रौबदार चेहरे के मालिक को मुसकराते हुए पाया।

43.शामियाने मेरी ग़ीबत में हवा तांती है गांव में मेरे न होने से बड़ी शांती है वो बगूला है कि उड़ने पे सदा आमादा मैं जो मिट्टी हूँ तो मिट्टी भी कहाँ मांती है देखना कैसे हुमकने लगे सारे पत्थर मेरी वहशत को तुम्हारी गली पहचांती है फूल बनती है कली हंसते हंसाते, लेकिन उसके इल जो गुज़रती है वही जांती है मेरी कोशिश है कि दुनिया को बना दूँ जन्नत और दुनिया मुझे आवारों में गरदांती है हमको इक हाल में क़िस्मत नहीं रहने देती कभी मिट्टी में मिलाती है कभी छांती है

44.शामियाने मेरी ग़ीबत में हवा तांती है गाँव में मेरे न होने से बड़ी शांती है वो बगूला है कि उड़ने पे सदा आमादा मैं जो मिट्टी हूँ तो मिट्टी भी कहाँ मांती है देखना कैसे हुमकने लगे सारे पत्थर मेरी वहशत को तुम्हारी गली पहुँचाती है फूल बनती है कली हंसते हंसाते, लेकिन उसके इल जो गुज़रती है वही जांती है मेरी कोशिश है कि दुनिया को बना दूँ जन्नत और दुनिया मुझे आवारों में गरदांती है हमको इक हाल में क़िस्मत नहीं रहने देती कभी मिट्टी में मिलाती है कभी छांती है

45.जब भी कोई किसी से जरा नाराज होता या थोड़े शरारती रौ में होता तो वह दूसरे की बाँह मचकोड़ कर या मुक्का तानते हुए कह देता थाः “क्यों खानी है खिट? ” पीरियड समाप्त होते ही पिछले बेंच वाला कोई शरारती लड़का दबी सी आवाज में कह देता था, “चल अब फुट...।” मास्टर मुरलीधर के कमरे से बाहर होते ही पिछले बेंचों से आवाजों का एक बगूला सा उठ खड़ा होता थाः “खा लो फुट..फुट...नहीं तो जाओगे पिट-पिट...।” “शराफत छोड़ दी हमने', फिल्मी गीत सुनते ही हमें हमारा जालिम बाप याद आने लगता है।

46.अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्ताँ आगे और भी है अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो! अभी तो टूटी है कच्ची मिटटी, अभी तो बस जिस्म ही गिरे हैं अभी तो किरदार ही बुझे हैं अभी सुलगते हैं रूह के ग़म, अभी धडकते हैं दर्द दिल के अभी तो एहसास जी रहा है ये लौ बचा लो जो थकके किरदार की हथेली से गिर पड़ी है ये लौ बचा लो यहीं से उठेगी जुस्तजू फिर बगूला बन कर यहीं से उठेगा कोई किरदार फिर इसी रौशनी को लेकर कहीं तो अंजाम-ओ-जुस्तजू के सिरे मिलेंगे अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!

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