(इव्) रज्जु तथा गट्टों से युक्त अवनद्ध वाद्यः इन वाद्यों में ढाँचे कीसतह पर चारों ओर डोरी या बद्धी की पंक्तियों को नीचे लकड़ी के गट्टे (टुकड़े) लगे रहने से उन्हें ठोंक कर खिसकाने से सूक्ष्म रूप से निश्चितध्वनि में मिलाने की उत्तम व्यवस्था रहती है.
42.
अथवा इससे भी अधिक समुन्नत `पुड़ी ' बनाने के लिए` पुड़ी' की बाहरी परिधिके वृत्ताकार कोर के साथ पतले चर्म की एक अन्य वृत्ताकार पट्टी ऊपरी सतहपर और दूसरी भीतर की ओर से लगाकर, तीनों को चमड़े की पतली बद्धी सेगूँथते हुए वलयाकार रूप में जोड़ दिया जाता है.
43.
एकमुखी अवनद्ध वाद्यों में डोरी या बद्धी की पंक्तियों को एक ओर वाद्यमुख पर मढ़ी `पुड़ी ' अथवा उसके` वलय' या `गजरे 'में बने छिद्रों में सेपिरोकर दुसरी ओर बंद छोर पर स्थित बेंत, चमड़े या धातु से बने लघु वलय केबीच फँसाते हुए खींचकर बाँध दिया जाता है.
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अतः इसके लिए कई अवनद्ध वाद्यों के मूलढाँचे की बाहरी सतह पर चारों ओर डोरी या बद्धी की पंक्तियों में धातु केछल्ले या लकड़ी के गट्टे (लंबे गोल टुकड़े) फँसा दिए चाते हैं, जिन्हेंआवश्यकतानुसार इधर-उधर सरकाने पर मुखावनद्ध चर्म की ध्वनि इच्छानुसारनीची या ऊँची की जा सकती है.
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वह लोहे के और शीशे के जेवर पहिरे, गले में बद्धी बांधे, कांख में पेटी रक्खे, दिन के पूर्वार्द्ध में नगर का पाखाना साफ करके उत्तरार्द्ध में नगर में न जाय ये इकट्ठे होकर नगर के बाहर नैर् ऋत्य कोण में रहें ऐसा न करें तो दण्डनीय हैं. ”