गुण: यह शीतल, रस तथा पाक में मधुर, स्निग्ध, रुचिकारक, हृदय को प्रिय, भारी तृप्तिदायक, ग्राही, वीर्यवर्द्धक, बलदायक और क्षत, क्षय, रक्तपित्त, कोठे की वायु, उलटी, कफ, बुखार, अतिसार, भूख, प्यास, खांसी, श्वास, दम, मूर्च्छा, वात और पित्त और मद्य सेवन से हुए रोगों को नष्ट करने वाला होता है।
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पिण्ड खजूर।गुण: यह शीतल, रस तथा पाक में मधुर, स्निग्ध, रुचिकारक, हृदय को प्रिय, भारी तृप्तिदायक, ग्राही, वीर्यवर्द्धक, बलदायक और क्षत, क्षय, रक्तपित्त, कोठे की वायु, उलटी, कफ, बुखार, अतिसार, भूख, प्यास, खांसी, श्वास, दम, मूर्च्छा, वात और पित्त और मद्य सेवन से हुए रोगों को नष्ट करने वाला होता है।
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आयुर्वेद के अनुसार खजूर पौष्टिक, मधुर, हृदय को बल देने वाला, क्षय, रक्त तथा पित्त शोध नाशक होता है, इसके अलावा यह फेफड़े के रोगों को दूर करने वाला मस्तिष्क शामक, नाड़ी बलदायक, वातहर, मानसिक दुर्बलता, कटिशूल, सायटिका तथा मदिरा के विकारों को दूर करता है।
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त्रिवंचुरें त्रिवृता रथेना यातम स्विना / माध्व: सोमस्य पीतये / अर्थात बलदायक प्राण और अपान तथा माधुर्य आदि गुण से संयुक्त-वीर्य शक्ति को विलीन करने के लिए तीन प्रकार के बन्धनों वाले-: वात, पित, तथा “ कफ ” इन तीनो प्रकृति वाले पदार्थो से बंधे हुए तीन गुण, सत्व, रज और तमाल-इस शारीर को प्राप्त हो /