दशहरे के समापन में भैंसे सहित अष्टांग बलियां भी दी जाती हैं [?] इस मंदिर के विशिष्ट पुरातात्विक एवं वास्तुशिल्प विशेषताओं और इस के पुरातात्विक महत्व के कारण भारत सरकार ने प्राचीन संस्मारक तथा पुरातात्विक स्थल के रूप में इसे स्वीकार कर लिया है.
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यहाँ सवाल मांसाहार या शाकाहार का नहीं है पशु अत्याचार का है-अब पशु मांस के उतकीय संवर्धन से कृत्रिम मांस भी व्यापारिक स्तर पर उपलब्ध हो सकेगा-आशंका यही है कि मजहब के नाम पर तब भी पशु बलियां दी जाती रहेगीं-जब की उसकी कोई आवश्यकता नहीं है-उस दिन का इंतज़ार करना होगा जब कानूनन जैसे शिकार अब प्रतिबंधित है यातनापूर्ण पशु बलि भी प्रतिबंधित होगी और एक दिन यह होना ही है!