बीबीसी पर पढ़ रहा था तो पाया कि ज्योति बसु के राजनीतिक करियर पर बहुत क़रीब से निगाह रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक और अंग्रेज़ी अख़बार ' टेलीग्राफ़ ' के राजनीतिक संपादक आशीष चक्रवर्ती कहते हैं, '' बसु कम्युनिस्ट कम और व्यवहारिक अधिक दिखते थे, एक सामाजिक प्रजातांत्रि क.
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पुनर्मिलन के इस निराले घटनाक्रम को बहुत क़रीब से देखने वाले वाइल्ड लाईफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के वरिष्ठ अधिकारी संदीप तिवारी बताते हैं कि 16 जून को जब हाथियों का झुंड कलिंग से सिर्फ 200 मीटर दूर था तभी उसने झुंड का ध्यान आकर्षित करने के लिए ऊंची आवाज़े निकालनी शुरू कर दीं.
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तो क्या हुआ कि आज अपनी ही सलवटों में लिपटे हुए परचमों को बहुत क़रीब से देख रहा हूं मैं किसी पार्टी-वर्कर की तरह हवा के रुख़ पर शर्मिंदा होता हुआ तुम्हें भी तो देख रहा हूं मैं तुम्हारी ही तरह मेरी हमनफ़स हवा के रुख़ को कई-कई दिशाओं में मोड़ते हुए बे-खौफ़ तोड़ते हुए भीतर की मजबूत श्रंखलाएं कड़ी-दर-कड़ी तुम अभूतपूर्व लग रही हो मेरे भीतर और बाहर खड़ी चैलेंज-सी...
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हां मां, उम्र की इस यात्रा से गुज़रते हुए चीज़ों को बहुत क़रीब से देखा है बातें बहुत साफ हुई हैं अब मैं अपने बच्चों को तुम्हारी कहानी सुनाता हूं कि कैसे पैसे के अभाव में तुम घुलती रही ताउम्र इस जंगलतंत्र में विवश हुए लोग हैं इन वर्षों में बहुत जटिल होती गयी है ज़िंदगी समूचे मानदंड बदल चुके हैं अमन और शांति दूर के ढोल हैं नेताओं के बोल हैं आदमी की क़ीमत मिट्टी के मोल है।....................................................................
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हां मां, उम्र की इस यात्रा से गुज़रते हुए चीज़ों को बहुत क़रीब से देखा है बातें बहुत साफ हुई हैं अब मैं अपने बच्चों को तुम्हारी कहानी सुनाता हूं कि कैसे पैसे के अभाव में तुम घुलती रही ताउम्र इस जंगलतंत्र में विवश हुए लोग हैं इन वर्षों में बहुत जटिल होती गयी है ज़िंदगी समूचे मानदंड बदल चुके हैं अमन और शांति दूर के ढोल हैं नेताओं के बोल हैं आदमी की क़ीमत मिट्टी के मोल है।....................................................................
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दिल्ली के हम सभी रीढ़विहीन लोग जो शशिभूषण को बहुत क़रीब से जानने का दावा कर रहे थे, पिछले दस दिनों से इस तरह नज़रें चुरा रहे हैं जैसे-‘‘सबको कुछ न कुछ काम पड़ गया है अचानक!‘‘उच्च शिक्षा और आभिजात्य के बीच का पूरक सम्बन्ध पिछली एक सदी में और भी प्रगाढ़ हुआ है यानि सीमित आर्थिक साधनों वाले मध्य वर्ग के लिये शिक्षा आज भी एक ऐसी सीढ़ी की तरह है जिसे लगा कर उच्च या अभिजात वर्ग तक पहुँचने की कोशिश की जा सकती है।