बहुत ऊंचा कुछ कहने सोचने और सिद्ध करने के लिए नहीं, बल्कि बस यह सोचकर लेखन में जुटे रहना चाहिए कि जो अनुभव समय और जीवन हमें प्रतिपल दे रही है, उसमे से कुछ जो किसी अन्य के जीवन को भी सुरभित कर पाए, उसे बाँट लेना चाहिए … अपना कुछ नुकसान नहीं होने वाला इसमें भले सामने वाले का कुछ भला होना तय है …
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कभी-कभी आपके मित्र, रिश्तेदार, भाई-बहन यह शिकायत कर सकते हैं कि आपने उन्हें उनके जन्म दिवस या विवाह की वर्षगाँठ में फोन पर शुभकामना नहीं भेजी जबकि सर्वश्रेष्ठ उपाय यह है कि उन्हें स्वयं अपनी यह खुशी बांटनी चाहिए यह कह कर कि आप आज के शुभ दिन हमारा आशीर्वाद (अगर बड़ों का जन्म दिवस है) लो क्योंकि यह खुशी हम तुम्हारे संग बाँट लेना चाहते हैं.
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अन्ततः दद्दा बोले, “ तुम मेरी कविता ' सान्त्वना ' पढ़ो उससे तुम्हारा मन अवश्य स्थिर होगा, सावित्री जी, उच्छवास (जिसमें सान्त्वना कविता छपी है) की अपनी कापी इनके पास भिजवा दें, मैं आप को और भेज दूँगा. ” “ तुम ” सम्बोधन उस व्यस्क मित्र के लिए था जिसके करुणा विगलित हृदय की द्रवित व्यथा को दद्दा बाँट लेना चाहते थे और “ आप ” सम्बोधन उस व्यक्ति के प्रति जिसे उन्होंने पिता का सा वात्सल्य और स्नेह दे कर कृतकृत्य कर दिया था.