मनुष्य अपने अस्तित्व में आने के समय से ही बाह्य प्रकृति और अन्तःप्रकृति की समस्याओं का समाधान पाने के लिए प्रयत्नशील रहा है।
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इससे यह निष्कर्ष तो स्पष्ट रूप से निकलता है कि अन्तः प्रकृति और बाह्य प्रकृति को समझे बिना अच्छा काव्य नहीं लिखा जा सकता।
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जहाँ विज्ञान की प्रगति बाह्य प्रकृति के अवलोकन का परिणाम हैं, वहीं अध्यात्म की प्रगति अंत: प्रकृति के सतत अवलोकन से हुई है।
44.
उसका एक सिरा अगर बाह्य प्रकृति है, तो दूसरा नाज़ुक छोर उथल-पुथल से साक्षात्कार करती अन्त: प्रकृति तक की यात्रा पूरी करता है ।
45.
परन्तु योगियों-ऋषियों की विचार चेतना या भाव चेतना में हल्की सी सकारात्मक या नकारात्मक तरंग उठते ही स्वतः बाह्य प्रकृति में घटना बन जाती है।
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प्राकृतिक चित्रण प्रकृति चित्रण में भारतेंदु जी को अधिक सफलता नहीं मिली, क्योंकि वे मानव-प्रकृति के शिल्पी थे, बाह्य प्रकृति में उनका मर्मपूर्ण रूपेण नहीं रम पाया।
47.
जो कहानियाँ कोई मार्मिक परिस्थिति लक्ष्य में रखकर चलेंगी उनमें बाह्य प्रकृति के भिन्न भिन्न रूप रंगों के सहित और परिस्थितियों का विशद चित्रण भी बराबर मिलेगा।
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यह वातावरण केवल बाह्य प्रकृति का ही नहीं है अपितु पात्रों के मन और दिमाग में चलने वाले विचारों और भावों से भी मिल कर बना है।
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अंतः-बाह्य प्रकृति में उभरती इस ऊर्वरता के सुयोग का भरपूर लाभ उठाने के लिए ही ऋषियों-मनीषियों ने श्रावणी पर्व का विधि-विधान तैयार किया है।
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प्राकृतिक चित्रण प्रकृति चित्रण में भारतेंदु जी को अधिक सफलता नहीं मिली, क्योंकि वे मानव-प्रकृति के शिल्पी थे, बाह्य प्रकृति में उनका मर्मपूर्ण रूपेण नहीं रम पाया।