और तब इंसान इस जन्म मौत के जाल से मुक्ति चाहता है | ये बाते मेरी बहुत कडुवी भी लग रही होंगी तो यही सत्य है | हमें इस कडुवाहट के साथ जीना भी पड़ता है | उस वक़्त प्रार्थना होती कि हे प्रभु! तू मौत को सरल कर दे | बिना कष्ट के इस रास्ते को आसान कर दे |
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पिघला हुआ सब कुछ पहले सा आकार ना ले पायें लेकिन पहले से बेहतर तो हो ही सकता है बिना कष्ट के लौटना उन रास्तों पर जिन्हें विश्वास के साथ अपनाया था जिसे एक ईमान दारी ओर सम्मान के साथ पाया जा सके बस यही तो इक्छा थी लेकिन उमीदों का बदरंग होना बचे-खुचे रंगों का अन्दर से झांकना-निरर्थक-अर्थों मैं कुछ खोजने जैसा..
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मृत्यु की ओर अग्रसर किसी अपने के उन पीड़ादायक क्षणों में एक ओर जब चिकित्सक इंगित कर रहा होता है कि मरीज़ किस दिशा में बढ़ रहा है हृदय किसी चमत्कार की आशा में होता है और हर तरह से दुआ कर रहा होता है मरीज़ के यथाशीघ्र ठीक होने के लिये ; दूसरी ओर मरीज़ का बढ़ रहा कष्ट देख दुआ कर होता है कि अब इस कैद-ए-बामशक्करत से मरीज को बिना कष्ट के मुक्ति मिले।