महाराजा पेशवा नाना साहब, रानी झांसी, खान बहादुर खान, बिरजिस कदर, बहादुरशाह, शाहजादा फिरोज शाह और मौलवी लियाकत अली के एलाननामों में सभी अंगरेजों को नसारा (ईसाई) और काफिर ही कहा गया है।
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वह अपना पुराना बेशमेट (Beshmet), बकरी की खाल की बिरजिस, भैंस की खाल के बूट, भेड़िये की खाल का टोप पहनते और अपने कंधे पर एक खाल डाल लेते थे.
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महाराजा पेशवा नाना साहब, रानी झांसी, खान बहादुर खान, बिरजिस कदर, बहादुरशाह, शाहजादा फिरोज शाह और मौलवी लियाकत अली के एलाननामों में सभी अंगरेजों को नसारा (ईसाई) और काफिर ही कहा गया है।
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अजीमुल्ला खाँ ने अवध जाकर वहां के बादशाह वाजिदअली शाह से मुलाकात की पर वाजिद अली अंग्रेजों से भिडना नहीं चाहते थे सो उसने बैसवाड़े के राजा राणा बेनीमाधव से मुलाकात की और उनके जरिए रानी हजरत महल और युवराज बिरजिस कदर से मिला।
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जब शाही बेगमों ने जान माल के डर से अपने बेटों को शाही वारिस बनाने से इन्कार कर दिया और बेगम हजरत महल ने अपने बेटे बिरजिस के पक्ष में यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तो उन्हें शाही परिवार के व्यंग्य बाणों से आहत होना पड़ा।
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शाही कुनबे के इस असहयोगी रवैये एवं विपरीत परिस्थितियों के बावजूद जब बेगम हजरत महल को ऊंची बेगमात के बेटों के रहते हुए भी बिरजिस कद्र को अवध का उत्तराधिकारी बनाने का गौरव प्राप्त हो गया तो उन्होंने स्वयं को इस नयी भूमिका के योग्य भी सिद्ध किया।
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ठीक उसी दिन राजा की अगवानी के लिए जुटी बीसीयों अहोदेदारों, टहलकारों और रियासत के सैंकड़ों बाशिंदों की भीड़ में, कसी हुई बिरजिस पर यही कोट पहने हुए और कमर पर किरिच लटकाए हुए कुमेदान ने फख्र से अपने चारों ओर देखा था और तन गया था।
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' 60 सम्भवतः इसी पुत्र मोह के चलते उन्होंने पराजय के बाद नेपाल में निर्वासन के दौरान पहले तो अंगे्रजों की पेंशन की पेशकश ठुकरायी, लेकिन फिर उन्हें इस आशय का पत्र लिख दिया कि ÷ बिरजिस कद्र और बेगम ने सिपाहियों के भय से गदर में भाग लिया था'
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÷ उन्होंने इस विद्रोही सत्ता के दरबार में मम्मू खां को प्रधान न्यायाधीश का पद दिया, जो उनका प्रेमी माना जाता था और बरकत अहमद को जिसने चिनहट के युद्ध में अंगे्रजों को मात दी थी, कोई पद नहीं मिल पाया, कारण यह कि उत्तराधिकारी के चयन में उन्होंने बिरजिस कद्र का पक्ष नहीं लिया था।
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मोहम्मदी, और शाहजहांपुर से चले अंग्रेज अफ़सर व उनके परिवार जिनका रास्ते में उन्ही के सैनिकों द्वारा कत्ल किया गया जो भाग कर बच निकले उन्हे मितौली के राजा लोने सिंह से शरण मांगी राजा ने उन्हे शरण तो दी किन्तु विद्रोहियों का भी उन्हे डर था, कम्पनी सरकार के खिलाफ़ लोने सिंह ने अवध के सिंहासन पर वाजिद अली शाह के बेटे बिरजिस कद्र की ताज़पोशी के दौरान पांच तोपो की सलामी अपने मितौली किले से दी थी, और विद्रोहीयों को मदद भी।