गंभीर मामलों की विशेषता या तो तीव्रता में कमी (संवेदनाशून्य चेतना) या बिलीरूबिन के बढ़े हुए स्तरों और प्रोथॉम्बिन के बढ़े हुए समय का सम्मिश्रण होती है;
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हेपेटाइटिस ए के लक्षण फ्लू जैसे ही होते हैं, किंतु त्वचा तथा आंखे पीली (पीलिया) हो जाती हैं क्योंकि जिगर रक्त से बिलीरूबिन को छान नहीं पाता है।
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गुरु का अपना रंग पीला ही होता है और पीलिया रोग में भी जब रक्त में बिलीरूबिन जाता है, तो शरीर के सभी अंगों को पीला कर देता है।
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इस बात की चिंता की जा रही है कि अपर्याप्त खोज और नवजात बिलीरूबिन की अधिकता के अपर्याप्त उपचार के कारण हाल के वर्षों में यह स्थिति बढ़ती जा रही है.
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जब कोई रोगात्मक प्रक्रिया चयापचय के सामान्य कार्य में हस्तक्षेप करती है और बिलीरूबिन के उत्सर्जन की सूचना सही ढंग से दी जाती है, तो इसके परिणामस्वरूप पीलिया हो सकता है.
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विशिष्ट यकृत फलक में प्रमुख रूप से यकृत से प्राप्त एंजाइमों के रक्त स्तर शामिल होंगे, जैसे कि एमीनोट्रांसफेरेज़ (ALT, AST), और क्षारीय फॉस्फेटेज़ (ALP); बिलीरूबिन (जिसके कारण पीलिया होता है);
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ब्लड क्लोतिंग टाइम (प्रो-थ्रोम्बिं न), बिलीरूबिन की कुल मात्रा (यानी यकृत स्वाश्थ्य) तथा बकरियों और खरगोशों में अल्केलाइन फोस्फेत a सर ग्रस्त देखे गए ।
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एक बार यकृत में पहुंच कर यह जल में अधिक घुलनशील बनने के लिए ग्लुकुरोनिक अम्ल के साथ संयुग्मित होता है (बिलीरूबिन डाइग्लुकूरोनाइड, या सिर्फ “संयुग्मित बिलीरूबिन” का निर्माण करने के लिए).
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थोड़ा बहुत बिलीरूबिन कोई समस्या पैदा नहीं करता है, अकसर माइल्ड जौंडिस नवजातों को हो भी जाता है और कुदरती तौर पर खुद बा खद ठीक भी हो जाता है.
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प्रत्येक नवजात शिशु में होता है क्योंकि संयोग और बिलीरूबिन के उत्सर्जन के लिये यकृत संबंधी रचनातंत्र लगभग दो सप्ताह तक की आयु के पहले पूर्ण रूप से परिपक्व नहीं होता है.