टेढ़े रास्ते हर किसी को नहीं लगते सीधे शंख में फूंकी हर वायु ध्वनि नहीं बनती फिर लगातार बजाता हूं माउथ ऑर्गन तब तक उस पार सलामत पहुंच जाए बिलौटा क्या कहने हैं...भाई कमाल की रचना...वाह. नीरजजियो गीत भाई।
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टेढ़े रास्ते हर किसी को नहीं लगते सीधे शंख में फूंकी हर वायु ध्वनि नहीं बनती फिर लगातार बजाता हूं माउथ ऑर्गन तब तक उस पार सलामत पहुंच जाए बिलौटा क्या कहने हैं...भाई कमाल की रचना...वाह. नीरजजियो गीत भाई।
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भीतर और बाहर की देहरी पर बैठा मैं रोक देता हूं माउथ ऑर्गन बजाना टेढ़े रास्ते हर किसी को नहीं लगते सीधे शंख में फूंकी हर वायु ध्वनि नहीं बनती फिर लगातार बजाता हूं माउथ ऑर्गन तब तक उस पार सलामत पहुंच जाए बिलौटा
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शेखूपुर की दो सीटों के लिए हरमोहन, शिवबाबू, कामता प्रसाद, जंग बहादुर, जयनारायन, भौली में शिवबरन, जगदीश सिंह, बचरौली में शिवकुमार, रामखिलावन, बिलौटा में रामबाई, शंकरपुर रघवा में रामसजीवन, भटपुरा से राजबहादुर ने नामांकन पत्र दाखिल किया है।
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|घोडा चाबुक खाय के, लखे विचरते ढोर || चले हुए नौ-दिन हुए, चला अढ़ाई कोस | लोकपाल का करी शुभ्र, तनिक होश में पोस || करी = हाथी कुर्सी के खटमल करें, मोटी-चमड़ी छेद |मर जाते अफ़सोस पर, पी के खून सफ़ेद || म्याऊँ सोच रही गद्दी पर देख बिलौटा बैठे कब-
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सुन कर हँसते हुए उन्होंने कहा था, “ लाओ, लिख कर लाओ इसे... छप जाएगी... । ” मैं उछलते हुए अपनी चील-बिलौटा, बड़े-बड़े अक्षरों वाली लिखावट में उसे लिखने बैठ गई और उन्हें तब तक अपने घर से हिलने नहीं दिया, जब तक वह रचना पूरी नहीं हो गई ।
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“ शुरुआत करते हुए बड़ा डर लगा, ना जाने कहाँ होगी राजकुमारी, पता नहीं कैसे हाल में होगी | पर भगवान का नाम लेकर शुरुआत कर दी है | शुरुआत में ही एक बिलौटा सामने से आता दिखा, डर के मारे मैं उछल पड़ा, मेरा सर दीवार से टकराया उससे एक मशरूम निकला, मैंने लपक के उसे खाया, लगा जैसे ताकत बढ़ गयी, बिलौटे से डट के मुकाबला किया ”