@ सुमंत मिश्र बृहत्तर भारत की भौगोलिक सीमाओं के बारे में आपके बताए स्थानों को पैमाना मानकर चाहे साधिकार कुछ न भी कहा जाए तो भी ठीक इसी आकार में भारत का सांस्कृतिक प्रभाव तो निर्विवाद था।
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जिस बृहत्तर भारत के लिए हरेक भारतीय को उचित अभिमान है, क्या उसका निर्माण इन्हीं घुमक्कड़ों का इतना जोर बुद्ध से एक-दो शताब्दियों पूर्व भी था, जिसके कारण ही बुद्ध जैसे घुमक्कड़ राज इस देश में पैदा हो सके।
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सवा अरब लोगों और दर्जन भर देशों के दक्षिण एशिया याने आर्यावर्त्त या बृहत्तर भारत की कल्पना सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के ढॉंचे में फिट क्यों नहीं बैठती? क्या ये सब बातें सत्ता में आने पर ही लागू की जा सकती हैं?
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और निश्चय ही प्राचीन बृहत्तर भारत के आखिरी छोरों से आज की भागोलिक सीमाओं में कभी आ सिमटे हमारे अदि पूर्वजों के की स्मृति शेष में रचे बसे उसी स्वान-राजहंस की ही छवि-विवरण हम ऋग्वेद एवं कतिपय प्राचीन संस्कृत साहित्य के ग्रंथों में पाते हैं....
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संसार का सांस्कृतिक (विशेषकर प्राचीन बृहत्तर भारत के पूर्वी भाग तथा दक्षिण-पूर्व एशिया का) इतिहास बताता है कि जिन्होंने वहॉं से आगे बढ़कर सुदूर मध्य तथा दक्षिण अमेरिका तक भारतीय आर्य सभ्यता का प्रसार किया, वे द्रविड़ (द्रृ = द्रष्टा; विद अथवा विर =͉ ज्ञानी) कहाते थे।
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भारतीय संस्कृति के विराट विस्तार एवं बृहत्तर भारत जो कभी था व कभी आगे चलकर बनेगा, उसकी जानकारी पाने पर प्रत्येक को अपने देश की ऐतिहासिक परम्परा व सांस्कृतिक विरासत पर गौरव होता है व अपने कर्तव्य का ज्ञान भी कि हम कैसे इसे अक्षुण्ण बनाए रख सकते हैं ।।
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पाठक जी की इस कहानी में मुझे दो बातों ने बहुत प्रभावित किया 1-बृहत्तर भारत के नागरिकों की कैसी त्रासदी है कि उन्हें भारतीय हो कर भी विभाजन के कारण विदेशी हो जाना पड़ता है... किंतु सारी बाधायें.... सारी सीमायें सोनागाछी में आकर समाप्त हो जाती हैं।
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वे भारतीय घुमक्कड़ ही थे, जिन् होंने दक्षिण-पूर्व में लंका, बर्मा, मलाया, यवद्वीप, स् याम, कंबोज, चंपा, बोर्नियो और सेलीबीज ही नहीं, फिलिपाईन तक का धावा मारा था और एक समय तो जान पड़ा कि न् यूजीलैंड और आस् ट्रेलिया भी बृहत्तर भारत का अंग बनने वाले हैं ;
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उन्होंने तो इस देश से भ्रष्टाचार समाप्त करने का और इसे ज़न्नत बना देने का एक मात्र सफल नुस्खा फरमाया है कि भारत को इस्लामिक देश बना दिया जाना चाहि ए. ब ांग्ला देश में, जो कभी बृहत्तर भारत का एक भाग रहा है, ऐसी घटनाएँ हो रही हैं तो इसके लिए निश्चित ही भारत विभाजन के समय की अदूरदर्शी कुनीतियाँ रहीं हैं...
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भारत-विसर्जन की विष-बेल को भारत क्यों सीचें? यदि श्रीलंका में तमिल राष्ट्र खड़ा हो तो नेपाल में मधेसी, भूटान में नेपाली, पाकिस्तान में सिंधी, बलूची और पठान तथा अफगानिस्तान में ताजिक राष्ट्रों की मांग क्यों नहीं होगी | क्या हम सारे दक्षिण एशिया के हजार टुकड़े कर देना चाहेंगे? क्या यह बृहत्तर भारत हजार गृहयुद्घों का समरांगण बनेगा? कतई नहीं |