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बेसुर उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
41.सारी रातें हैं-एक, दो, तीन, चार-! मेरे आँसू की भरीं उभय जब प्याली बेसुर! मधुर क्यों गाने आई आली? क्या हुई बावली? अर्द्द्घरात्रि को चीखी कोकिल बोलो तो! किस दावानल की ज्वालाएँ हैं दीखीं? कोकिल बोलो तो!

42.घूम रहे हैं आज हम बेसुर, बेताल और बिना किसी कारण के हम घूम रहे हैं कहीं जनता की खीझ है एक, एक दूसरे के ऊपर टूट रहा पछाड़ने के चक्कर में, तेज रफ्तार से गिरते लड़खड़ाते कूद रहा तो कहीं गाड़ियों की कर्कश आवाज यहीं कहीं रिक्शेवान की चलती सांसे हैं चपटे गा

43.घूम रहे हैं आज हम बेसुर, बेताल और बिना किसी कारण के हम घूम रहे हैं कहीं जनता की खीझ है एक, एक दूसरे के ऊपर टूट रहा पछाड़ने के चक्कर में, तेज रफ्तार से गिरते लड़खड़ाते कूद रहा तो कहीं गाड़ियों की कर्कश आवाज यहीं कहीं रिक्शेवान की चलती सांसे हैं चपटे गा...

44.खो दिया पथ हारा रेत हांथों में सिमत्त्थी गई टिमटिमाती तारे भी ओझल हो गए सपने खोये ख्वाब बेरंग बन्न गए कलाकार की छवि अधूरी रह गई कविता बेसुर बन्न गए शब्दों में खिलखिलाती हँसी खो गई ज़िन्दगी का साज़ गुल हो गया सोचा समय का बदलाव हें ज़िन्दगी की यह ठहराव हें खुदी को ढूँढ़ते अपने आप को खो दिया।

45.कौवे ने कोयल से पूछा-हम दोनों तन के काले हैं फिर जग तुझ पर क्यों मरता है मुझसे नफरत क्यों करता है कोयल बोली-सुन ऐ कौवे, बेहद शोर मचाता है तू अपनी बेसुर काय-काय से कान सभी के खाता है तू मैं मीठे सुर में गाती हूँ हर इक का मन बहलाती हूँ इसीलिए जग को भाती हूँ जग वालों का यश पाती हूँ

46.रे मन सुर में गाकोई तार बेसुर न बोले, न बोलेरे मन सुर में गा...जीवन है सुख दुःख का संगममध्यम के संग जैसे पंचमदोनों को एक बनारे मन सुर में गा...दिल जो धड़के ताल बजे रेताल ताल में समय चले रेसमय के संग हो जारे मन सुर में गा...जग है गीतों की रजधानीसुर है राजा लय है रन्नीसाज़ रूप बन जारे मन सुर में गा...

47.कौवे ने कोयल से पूछा, हम दोनो तन के काले हैं फिर जग तुझपर क्यों मरता है मुझसे नफ़रत क्यों करता है कोयल बोली, सुन ए कौवे, बेहद शोर मचाता है तू अपनी बेसुर कांय-कांय से कान सभी के खाता है तू मैं मीठे सुर में गाती हूँ, हर इक का मन बहलाती हूँ इसीलिये जग को भाती हूँ, जगवालों का यश पाती हूँ

48.उठा कर समय का फायदा जेब से निकाल कविताओ का पुलंदा कुछ स्वर में कुछ बेसुर में कुछ गुनगुन कर कुछ धुन में एक नहीं दो नहीं तीन नहीं चार नहीं आठ दस कह डालीं हम बोले… मान्यवर कहो कैसी रही वे बोले… क्या बात है भाई बहुत खूब मै बोला आगर आप अन्यथा न लें तो चलूँ पकड कर मेरे कुर्ते का पल्लू वो बोला… सुना कर अपनी कविता गजल धुन कह रहा है कि चलूँ

49.जिसमें तू न हम्वारी देखेगा न कोई बुलंदी देखेगा.---और उस वक़्त तमाम चेहरे हय्युल क़य्यूम के सामने झुके होंगे. '' इसके बाद मुहम्मद इसी टेढ़ी मेढ़ी भाषा में क़यामत बपा करते हैं, फरिश्तों की तैनाती और सूर की घन गरज भी होती है और ख़ामोशी का यह आलम होता है कि सिर्फ़ पैरों की आहट ही सुनाई देती है, बेसुर तन की गप जो उनके जी में आता है बकते जाते हैं और वह गप कुरआन बनती जाती है.

50.---और उस वक़्त तमाम चेहरे हय्युल क़य्यूम के सामने झुके होंगे. '' इसके बाद मुहम्मद इसी टेढ़ी मेढ़ी भाषा में क़यामत बपा करते हैं, फरिश्तों की तैनाती और सूर की घन गरज भी होती है और ख़ामोशी का यह आलम होता है कि सिर्फ़ पैरों की आहट ही सुनाई देती है, बेसुर तन की गप जो उनके जी में आता है बकते जाते हैं और वह गप कुरआन बनती जाती है.” ऐसे कुरान से जो मुँह फेरेगा वह रहे रास्त पा जायगा और उसकी ये दुन्या संवर जायगी.

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