अंतिम ब्रांट बहन, शार्लोट ब्रांट की मौत के साथ ही यह कहानी समाप्त हो गई, लवली जी | हाँ, उनका डेढ़ सौ साल से भी पहले रचा साहित्य अभी भी जीवित है, और उनमें लिखी कहानियाँ अभी भी चल रही हैं और शायद सदा चलती रहेंगी |
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अंतिम ब्रांट बहन, शार्लोट ब्रांट की मौत के साथ ही यह कहानी समाप्त हो गई, लवली जी | हाँ, उनका डेढ़ सौ साल से भी पहले रचा साहित्य अभी भी जीवित है, और उनमें लिखी कहानियाँ अभी भी चल रही हैं और शायद सदा चलती रहेंगी |
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इक्कीस वर्ष तक ब्रांट परिवार की देख-भाल करने के बाद उनकी पालनकर्त्ता मौसी श्रीमती ब्रैनवेल का सन १ ८ ४ २ में निधन हुआ तो ब्रांट बहनों ने पाया कि मौसी के पास जो थोड़ी-बहुत जायदाद थी, उसे वे अपनी भांजियों-शार्लोट, एमिली और ऐन के नाम वसीयत कर गयी थीं।
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इक्कीस वर्ष तक ब्रांट परिवार की देख-भाल करने के बाद उनकी पालनकर्त्ता मौसी श्रीमती ब्रैनवेल का सन १ ८ ४ २ में निधन हुआ तो ब्रांट बहनों ने पाया कि मौसी के पास जो थोड़ी-बहुत जायदाद थी, उसे वे अपनी भांजियों-शार्लोट, एमिली और ऐन के नाम वसीयत कर गयी थीं।
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बच्चे कुछ बडे हुए तो उनकी शिक्षा-दीक्षा का प्रश्न उठा | रेवरेंड ब्रांट की हैसियत ऐसी नहीं थी कि वह अपने सारे बच्चों को किसी सामान्य स्कूल में भेज सकें | सो उन्होंने अपनी बड़ी चार बेटियों को, जो स्कूल जाने लायक हो गई थीं, शिक्षा प्राप्त करने के लिये एक ऐसे बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया जहाँ गरीब घरों की लड़कियाँ रहती थीं और उन्हें मुफ़्त में, बिना किसी फ़ीस के पढ़ाया-लिखाया जाता था।