चकाचौंध से परे, ब्लैक एण्ड व्हाइट फिल्मों का वो ज़माना भी अजीब था, जब पर्दे पर ना तो रंग दिखते थे और ना ही कोई तड़क-भड़क. अगर कोई चीज़ शुरू से अंत तक दर्शकों को बांधे रखती थी, तो वो थी कलाकारों की संवाद आदायगी, उनके भाव और बेहतरीन नगमें.
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उनकी फ़िल्म ‘पुकार ' और ‘जेलर' के असली पोस्टर, फ़िल्म ‘कुंदन' की ब्लैक एण्ड व्हाइट तस्वीरें, कुछ दूसरी फ़िल्मों के फ़ोटो सेट, फ़िल्म में प्रयोग होने वाला क्लीपर बोर्ड, कई फ़िल्मों में प्रयुक्त चीनी मिट्टी के बर्तन, सोहराब मोदी के कुछ सूट और टाइयाँ और फ़िल्मी गीतों की कुछ पुरानी पुस्तकें भी बोली लगाने वालों की प्रतीक्षा में हैं.
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उन पुरानी ब्लैक एण्ड व्हाइट तस्वीरों में, मैं छुटपन में जिन लोगों की गोद में बैठा हूँ, वे आज अवसाद के क्षणों में मेरे कंधे देखते हैं, तब उन्हें यह सब खयाल भी नहीं आया होगा, मैं जब, सुरक्षित और पूरे हक के साथ था, जब चेतना नहीं थी, बस उनकी छाँव थी।
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और किसी से भी कह सकते कि कहानी गोल होती है और रंगीन भी. हमारे पेंसिल बॉक्स में जितने रंग होते कहानियां उतने रंगो की होतीं, पर ऐसा नहीं था, हमारे सामने सिर्फ उलझी हुई ब्लैक एण्ड व्हाइट एक भद्दी-सी तस्वीर होती और चित्र में कहीं भी विद्यालय होता तो हम विद्यालय पर लेख लिख देते.
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इस बीच मैंने अपनी ओर से एक और नया प्रयास किया है और वेताल की एक बहुत पुरानी कहानी [डेली स्ट्रिप ० ६ ०-The Wisdom of Solomon (वर्ष १ ९ ५५)] को ना सिर्फ़ ब्लैक एण्ड व्हाइट से रंगीन में तब्दील किया है बल्कि उसे हिन्दी में अनुवादित करके हिन्दी संवादों के साथ पेश करने का प्रयास किया है.
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(यहाँ हम बता दें कि घर में पुराना ब्लैक एण्ड व्हाइट टीवी पड़ा है जिसे कोई चलाता नहीं और जब चलाता ही नहीं तो केबल का क्या काम) कम्प्यूटर और इण्टरनेट के साथ सुविधा हमें ये लगती है कि जब खाली समय हो तब उपयोग कर सकते हैं जबकि टीवी पर जब पसंदीदा प्रोग्राम आ रहा हो उसी समय देखना पड़ेगा बेशक आपके पास खाली समय नहीं है।