नाम और रूप दोनों ईश्वर की उपाधि हैं, ये (भगवान के नाम और रूप) दोनों अनिर्वचनीय हैं, अनादि हैं और सुंदर (शुद्ध भक्तियुक्त) बुद्धि से ही इनका (दिव्य अविनाशी) स्वरूप जानने में आता है॥ 1 ॥
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स्त्री के साथ यह आम बात रही, उसे बस एक औरत के रूप मे देखा जाता है, कोई उम्र हो, कोई रिश्ता हो-यही कहना चाहूँगी, सिद्धांत, आदर्श, भक्तियुक्त पाखंडी उपदेश नरभक्षी शेर-गली के लिजलिजे कुत्ते-मुश्किल है मन के मनकों में सिर्फ प्यार भरना.
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शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः॥ भावार्थ: जो न कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न कामना करता है तथा जो शुभ और अशुभ सम्पूर्ण कर्मों का त्यागी है-वह भक्तियुक्त पुरुष मुझको प्रिय है॥ 17 ॥ समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः।
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इस गीताशास्त्र में मनुष्यमात्र का अधिकार हे चाहे वोह किसी भी वर्ण आश्रम में स्थित हे परन्तु भगवान में श्रद्धालु और भक्तियुक्त अवश्य होना चाहिए कहा गया हे के स्त्री, वेश्य,शुद्र,और पापुयोनी भी मेरे परायण होकर परम गति को प्राप्त होते हें अध्याय ९ के श्लोक ३९ में इसका वर्णन हे अध्याय १८ के श्लोक ४६ में खा गया हे के अपने अपने स्वाभाविक कर्मों द्वारा मेरी पूजा करके मनुष्य परमसिद्धि को प्राप्त होते हें।