क्रिकेटीय नीतियाँ, और नए-नए शगूफ़े शुरुआत में कुछ भड़ास निकालना चाहता था पर फिर इच्छा हुई कि भारतीय टीम और गुरु ग्रैग की रणनीति की प्रशंसा करूँ इसलिए पोस्ट में दोनों चीज़े शामिल कर लीं, पर क्रिकेट भक्ति तो आपको अंत में ही दिखेगी।
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दूसरों की गलतियाँ निकालना, अपने मन की सच्ची या झूठी भड़ास निकालना, अनर्गल बतियाना, गाली-गलौज करना, किसी भी विषय पर कुछ भी लिखना... बस लिखते जाना!... कविता के नाम पर छोटे छोटे वाक्य-बे-मतलब के-प्रयोग में लाना...
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जो कुछ करे वह सरकार करे, हम क्यूँ कुछ करें हमारा तो काम है सिर्फ दूसरों के मीनमेख निकाल कर बस यूँ ही अपनी भड़ास निकालना, चार गालियां देना और फिर उसी ढर्रे पर रेंगने लगना ठीक उसी नाली के कीड़े की भांति जिसे साफ सफ़ाई कभी पसंद नहीं आती।
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शम्स भाई आपने तो भड़भड़ा कर भड़ास निकालना शुरू कर दिया लेकिन अब अगर भाई लोग नाराज़ हो कर मुझे ठोकने-पीटने घर आ गए तो क्या होगा यार:) मैंने आपको सिर्फ़ मेल फ़ारवर्ड करा था सिर्फ़ पढ़ने के लिये इनकी बखिया उधेड़ने के लिये नहीं डा. अंसारी एक अत्यंत सम्मानित व्यक्ति हैं।
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आप से उम्मीद है कि आप निष्पक्ष रहते हुए मेरी बात जरूर अपने ब्लॉग में किसी संशोधन के बिना रखेंगे, वरना आपको भी मीडिया के तरह निष्पक्ष रहना हो तो कोई बात नहीं, पर भड़ास पर मैं जो भड़ास निकालना चाहता हूँ उसमें आप मेरी सहायता करेंगें ऐसी उम्मीद के साथ आपका बहुत बहुत धन्यवा द..
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... ' इस विषय पर मैं थोड़ा और बोल कर अपनी भड़ास निकालना चाहता था, पर उसके चेहरे पर अधीरता के गहरे होते चिह्नों को देख कर, जिनका तात्पर्य यह था कि ' तुमने मुझे सुनने के लिए रोका था या अपने को सुनाने के लिए? ' मैंने जल्दी से कहा, ' इस जुलूस में जो लोग शामिल हैं, उनकी माँग क्या है? '