हमारे देश में दो एक ही लिंग के व्यक्ति साथ नहीं रह सकते हैं और न उन्हें कोई कानूनन मान्यता या भरण-पोषण भत्ता दिया जा सकता है।
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इसकी धारा ३ ६ में यह कहा गया है कि मुकदमे के दौरान पत्नी को, पति की आय का १ / ५ भाग भरण-पोषण भत्ता दिया जाय।
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इस कानून में 10 हजार रुपये तक का भरण-पोषण भत्ता बुजुर्गों को देना पड़ सकता है, वहीं 3 माह तक के कारावास की सजा का प्रावधान है।
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उक्त सम्पूर्ण विवेचना तथ्यों एवं परिस्थिति को दृष्टिगत रखते हुए दोनों बच्चों को 700 /-, 700/-रूपया माहवार के हिसाब से भरण-पोषण भत्ता दिलाया जाना न्यायोचित प्रतीत होता है।
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उसने गृह निर्माण हेतु 1, 75,000/-रूपए श्रृण ले रखा है जो प्रतिमाह वेतन से कट जाता है ऐसी परिस्थिति में वह उसे भरण-पोषण भत्ता देने में असमर्थ है।
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ऐसी दशा में प्रार्थिनी का विपक्षी के साथ जाने का कोई औचित्य नहीं है वह विपक्षी से अलग रहते हुए उससे भरण-पोषण भत्ता प्राप्त करने की अधिकारिणी है।
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इसको पढ़ने से लगता है कि यदि मुसलमान पति, अपनी पत्नी को मेहर दे देता है तो इद्दत की अवधि के बाद भरण-पोषण भत्ता देने का दायित्व नहीं होगा।
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यह भी एक महत्वपूर्ण सवाल है कि क्या किसी महिला को, उस पुरुष से, भरण-पोषण भत्ता मिल सकता है जिसके साथ वह पत्नी की तरह रह रही हो जब,
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Shahbano Begum में यह फैसला दिया कि यदि मुसलमान पत्नी, अपनी जीविकोपार्जन नहीं कर पा रही है तो मुसलमान पति को इद्दत के बाद भी भरण-पोषण भत्ता देना होगा।
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इसको पढ़ने से लगता है कि यदि मुसलमान पति, अपनी पत्नी को मेहर दे देता है तो इद्दत की अवधि के बाद भरण-पोषण भत्ता देने का दायित्व नहीं होगा।