गुरु आदि के साथ विचार कर पदार्थ का परिशोधन होने पर पहले स्थूल आदि शरीरों में तादात्म्याध्यास से जो आत्मसादृश्य था, वह जिसका निवृत्त हो गया है, उस अधिकारी पुरुष को ' तत्त्वमसि ' आदि वाक्यों के अर्थ के विचार से तत्त्व के ज्ञात होने पर, मनन द्वारा असंभावना और विपरीत भावनाशून्य बुद्धि से ब्रह्म का साक्षात्कार होने पर मोह के नष्ट होने एवं अति निविड़ भ्रम ज्ञान के विलीन होने पर यह जगत् का भ्रमण मनोविनोद (आनन्दसाधन) ही है, दुःखकारी नहीं है।।