पृथ्वी के बड़े वृत्त के एक चाप a को भूगणितीय विधि से मापकर और वक्रताकेंद्र पर इस चाप द्वारा बनाए कोण X को खगोलिय विधि से मापकर पृथ्वी का आकार और विस्तार निर्धारित किया जाता है।
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जिस सर्वेक्षण में पृथ्वी के आकार को गोलाभ (spheroid) मानकर, उसकी सतह पर लिए गए नापों का प्रयोग करने से पहले पृथ्वी की वक्रता के लिए शोधन करते हैं, उसे भूगणितीय सर्वेक्षण कहते हैं।
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पृथ्वी के बड़े वृत्त के एक चाप अ (a) को भूगणितीय विधि से मापकर और वक्रताकेंद्र पर इस चाप द्वारा बनाए कोण a को खगोलिय विधि से मापकर पृथ्वी का आकार और विस्तार निर्धारित किया जाता है।
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यदि भूगणितीय सर्वेक्षण से प्राप्त नियंत्रण बिंदु पट्ट सर्वेक्षण के लिए पर्याप्त नहीं होते हैं, तो सर्वेक्षक स्थानीय आवश्यकता की पूर्ति के लिए भूगणितीय नियंत्रण बिंदुओं पर आधारित एक छोटा सा त्रिभुजन कर लेता है, जिससे पर्याप्त नियंत्रण बिंदु मिल जाते हैं।
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यदि भूगणितीय सर्वेक्षण से प्राप्त नियंत्रण बिंदु पट्ट सर्वेक्षण के लिए पर्याप्त नहीं होते हैं, तो सर्वेक्षक स्थानीय आवश्यकता की पूर्ति के लिए भूगणितीय नियंत्रण बिंदुओं पर आधारित एक छोटा सा त्रिभुजन कर लेता है, जिससे पर्याप्त नियंत्रण बिंदु मिल जाते हैं।
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भूगणितीय सर्वेक्षण के इन विभिन्न पहलुओं के कारण भूगणित के विस्तृत अध्ययन क्षेत्र में अब पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र का, भूमंडल पृष्ठ समाकृति पर इसके प्रभाव का और पृथ्वी पर सूर्य तथा चंद्रमा के गुरुत्वीय क्षेत्रों के प्रभाव का अध्ययन समाविष्ट है।
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भूगणितीय सर्वेक्षण के इन विभिन्न पहलुओं के कारण भूगणित के विस्तृत अध्ययन क्षेत्र में अब पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र का, भूमंडल पृष्ठ समाकृति पर इसके प्रभाव का और पृथ्वी पर सूर्य तथा चंद्रमा के गुरुत्वीय क्षेत्रों के प्रभाव का अध्ययन समाविष्ट है।
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भूगणितीय सर्वेक्षण के इन विभिन्न पहलुओं के कारण भूगणित के विस्तृत अध्ययन क्षेत्र में अब पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र का, भूमंडल पृष्ठ समाकृति पर इसके प्रभाव का और पृथ्वी पर सूर्य तथा चंद्रमा के गुरुत्वीय क्षेत्रों के प्रभाव का अध्ययन समाविष्ट है।
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भारत में गुरुत्वाकर्षण क्षेत्रों का अध्ययन 1830 के दशक में किया गया जब भारत के तत्कालीन महा सर्वेक्षक कर्नल जार्ज एवरेस्ट ने 770 30 ई देशान्तर रेखांश के आसपास वृत्तांश का सुस्पष्ट मापन किया तथा कालिना और कालियांपुर के बीच अक्षांश के भूगणितीय तथा खगोलीय परिमाप के बीच अंतर की खोज की।
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भारत में गुरुत्वाकर्षण क्षेत्रों का अध्ययन 1830 के दशक में किया गया जब भारत के तत्कालीन महा सर्वेक्षक कर्नल जार्ज एवरेस्ट ने 770 30 ई देशान्तर रेखांश के आसपास वृत्तांश का सुस्पष्ट मापन किया तथा कालिना और कालियांपुर के बीच अक्षांश के भूगणितीय तथा खगोलीय परिमाप के बीच अंतर की खोज की।