हाँ दारू, सुट्टा, गाँजा, अफ़ीम, हेरोइन वगैरह……अबे ये सब भी नही पीता हूँ यार मैं बहुत होनहार, सीधा-साधा, सबको प्यार करने वाला, नेक दिल, ईमानदार, हिम्मती, शरीफ़ (अबे पूरे शरीर से शराफ़त टपकती है भाई), भोलाभाला (बस भोला हूँ भाला वगैरह नही रखता यार………अबे आदिवासी ठोड़े ही हूँ) लडका हूँ
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हाँ दारू, सुट्टा, गाँजा, अफ़ीम, हेरोइन वगैरह……अबे ये सब भी नही पीता हूँ यार मैं बहुत होनहार, सीधा-साधा, सबको प्यार करने वाला, नेक दिल, ईमानदार, हिम्मती, शरीफ़ (अबे पूरे शरीर से शराफ़त टपकती है भाई), भोलाभाला (बस भोला हूँ भाला वगैरह नही रखता यार………अबे आदिवासी ठोड़े ही हूँ) लडका हूँ ।
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Mail चेक करने के लिए सराय के ऑफिस में उपलब्ध कंप्यूटर से इन्टरनेट से जोड़ना चाहा, लेकिन वो नहीं जुड़ा! पर उनकी टेबल बड़ी सजीली थी! सौरभ तो सिंपल साधारण और बड़ा ही मासूम-सा है और दिखता भी भोलाभाला है, लेकिन जिस कुर्सी टेबल पर वो बैठा था, वह बड़ा सजीला और भड़कदार था!
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एक तरह से वहीदा रहमान की स्थिति को प्रदर्शित करते हैं कि वह नाचने वाली है लेकिन एक अदृश्य “पिंजरे” में कैद है और भोलाभाला ग्रामीण गाड़ीवाला (जिसे “चलत मुसाफ़िर” की संज्ञा दी गई है) उसे पा नहीं सकेगा… इस गीत के बोल भी उत्तरप्रदेश-बिहार के ग्रामीण बोलचाल से प्रेरित हैं, जिसे हम अवधी, भोजपुरी कुछ भी नाम दे सकते हैं…
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एक तरह से वहीदा रहमान की स्थिति को प्रदर्शित करते हैं कि वह नाचने वाली है लेकिन एक अदृश्य “पिंजरे” में कैद है और भोलाभाला ग्रामीण गाड़ीवाला (जिसे “चलत मुसाफ़िर” की संज्ञा दी गई है) उसे पा नहीं सकेगा… इस गीत के बोल भी उत्तरप्रदेश-बिहार के ग्रामीण बोलचाल से प्रेरित हैं, जिसे हम अवधी, भोजपुरी कुछ भी नाम दे सकते हैं…
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कहते है मै सबकी बात मानता (अपना काम पड्ने पर) हुँ, सीधा-साधा (जलेबी की तरह), सबको प्यार करने वाला (लड़कियों को विशेष तौर पर), नेक दिल (दिल बहुतों को दे चुका हूँ), ईमानदार (कई बार ईमान बेचने की कोशिश की लेकिन कोई खरीदता ही नही) अल्ला की गाय की तरह भोलाभाला (भोला हूँ पर भोले भंडारी की तरह।
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इसी तरह जीवन के मूल सिद्धांतों पर भी मधुशाला के माध्यम से रोशनी डाली गई है कि किस तरह आप एक राह पकड़कर अपनी मंजिल हासिल कर सकते हैं-मदिरालय जाने को घर से चलता है पीने वाला किस पथ से जाऊँ असमंजस मे है वो भोलाभाला अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं ये बतलाता हूँ राह पकड़ तू एक चला चल पा जाएगा मधुशाल ा अमिताभ ने उस लेख में लिखा हैं।
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इसी तरह जीवन के मूल सिद्धांतों पर भी मधुशाला के माध्यम से रोशनी डाली गई है कि किस तरह आप एक राह पकड़कर अपनी मंजिल हासिल कर सकते हैं-मदिरालय जाने को घर से चलता है पीने वाला किस पथ से जाऊँ असमंजस मे है वो भोलाभाला अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं ये बतलाता हूँ राह पकड़ तू एक चला चल पा जाएगा मधुशाल ा अमिताभ ने उस लेख में लिखा हैं।
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वह समझ गया था कि चूंकि पेशकार परिचित था इसलिए शर्म के मारे पैसे नहीं मांग रहा था और काम को भी आगे नहीं बढ़ा रहा था ; असमंजस में था भोलाभाला. पेशकार महोदय द्वारा वस्तुस्थिति बताने में बार-बार टालमटोल करने के बाद उसे ताव आ गया और वह जा पहुंचा डी. सी. एल. आर. कार्यालय. यहाँ मैं आपको यह बताता चलूँ कि जैसा कि उसने मुझे बताया कि उसके पिताजी जो प्रोफ़ेसर हैं ; के उस पेशकार पर बड़े उपकार थे.