इन लोगों के आने से लगभग एक सप्ताह पहले पड़ौस वाले शर्माजी (जिन्होने मेरी माता जी के निधन के बाद ऊधम किया था और जिन्होने ही मथुरा वाले माथुर साहब को मेरे मकान की बाबत भ्रामक सूचना दी थी) के एक रिश्तेदार जो अपने श्वसुर साहब के रेजिस्ट्रेशन पर मेडिकल प्रेक्टिस करते थे मेरे घर आए और सवाल उठाया कि मैंने उनके चचिया श्वसुर डॉ रामनाथ से क्यों संपर्क तोड़ा? उनका दबाव था कि मुझे पुनः उनसे मेल करना चाहिए।
42.
कारगिल युद्ध के दौरान सेनाध्यक्ष रहे जनरल वीपी मलिक ने अपनी नयी किताब में जिस तरह से उस संघर्ष के बारे में जानकारियां साझा की हैं उससे तो कम से कम यही पता चलता है कि देश के नेताओं की सोच सामरिक मुद्दों पर कितनी छोटी और संकुचित होती है और वे केवल उन्हीं क्षेत्रों की बातें आँखें मूंदकर मानते हैं जिन पर उनका अपने अनुसार विश्वास होता है भले ही वे कितनी भी भ्रामक सूचना ही क्यों न प्रेषित कर रहे हों और सेना की बातों की किस तरह से अनदेखी भी करते रहते हैं?