कुछ समय पहले एक फ़िल्म आयी थी “ लक्ष्य ” जिसमें प्रीति जिंटा जो पत्रकार का भाग निभा रहीं थी कुछ ऐसी ही बात कहती हैं अपने मँगेतर से जब वह उसे कारगिल जाने से रोकता है, और वह इस बात पर शादी तोड़ देतीं हैं.
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बेसब्र प्रेमी का रूप धरे जब मँगेतर अपनी भावी पत्नी के साथ थोड़ा फिजिकल होना चाहता है तो शर्म, झिझक व लोकलाज से शुरू-शुरू में लड़की 'नहीं-नहीं' अभी नहीं, शादी के बाद' का राग अलापती जरूर है पर नए-नए प्रेम का उबाल और भावी पति का लगातार मनुहार उसे घुटने टेकने को मजबूर कर देता है।
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बेसब्र प्रेमी का रूप धरे जब मँगेतर अपनी भावी पत्नी के साथ थोड़ा फिजिकल होना चाहता है तो शर्म, झिझक व लोकलाज से शुरू-शुरू में लड़की ' नहीं-नहीं ' अभी नहीं, शादी के बाद ' का राग अलापती जरूर है पर नए-नए प्रेम का उबाल और भावी पति का लगातार मनुहार उसे घुटने टेकने को मजबूर कर देता है।
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पर अगर पति को विवाह के बाद काम के लिए पत्नी की अनुमति नहीं लेनी पड़ती तो पत्नि को ही क्यों इसकी अनुमति लेनी चाहिये, यह समझ में नहीं आता?कुछ समय पहले एक फ़िल्म आयी थी “लक्ष्य” जिसमें प्रीति जिंटा जो पत्रकार का भाग निभा रहीं थी कुछ ऐसी ही बात कहती हैं अपने मँगेतर से जब वह उसे कारगिल जाने से रोकता है, और वह इस बात पर शादी तोड़ देतीं हैं.