आज हर फूल, हर कली मेरे साथ है ये मंद पवन मेरी संगिनी बन झूम रही है यूँ लग रहा है जैसे हर परिंदा मेरे लिए ही गा रहा है...
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बन चकोर शशि हित, शोलों को, चुगना ही सिखा जीवन में ; निभना ही सीखा............................................................... । 2 । मंद पवन की शीतल सिहरन, को मैंने स्वीकार किया है ;
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कुमार राधा रमण जीवन बहता जाए निर्झरशीतल मंद पवन ज्यूं सरसरचुनें, चुगें या चुक जाएंगेसुनने से स्रष्टा का मर्मरसृष्टि-चक्र में छोड़ें अपने, प्रीत के पद-चिह्नों की रीत!आओ मिलकर गाएं हम सब,जीवन के स्पंदन-गीत!
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बेहिसाब दौड़ती-भागती ज़िन्दगी पसीने में तर-बतर है बंद रोशनदान की सुराख से आती मंद-मंद पवन सहलाती है अब तो बोधिवृक्षों की छाँव तलाशने में मेरे वक़्त की रफ़्तार जूझ रही है ।
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तेरा निर्मल जल पीकर ये जीवन हुआ निर्माण, तेरी शीतल मंद पवन देती जीवन को प्राण! तेरी रज रज है प्यार तेरे हम पे बड़े उपकार! हर दिन गाए तेरे गुणगान-धरती माँ!!
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शीतल मंद पवन कॆ झोंकेआंधी के पीछे पछियातेमीठा मीठा गप कर लेतेकड़ुआ कड़ुआ थू कर जातेहवा आज बीमार हो गईपानी दवा नहीं बन पायातूफानों ने हर मौसम कोआंसू आंसू खूब रुलायाबैतालों को बदल न पायेविक्रम की नादानी बदलें?
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खग वृन्द बनें चारण जहाँ पर लघु वारिद खंड करते अभिषेक | मृदु नीर भी अमृत सम उत्तम शीत मंद पवन भी हुई उन्मत्त अलका जी, सादर प्रणाम! आपकी उन्मादिनी कविता पर मैं क्या करूँ अभिव्यक् त.
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चारू चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल थल में स्वच्छ चान्दिनी बिची हुई है अवनी और अम्बर थल में पुलक प्रकट करती है धरती हरित तरुणों की झोंकों में मनो झूम रहें हैं तरु भी मंद पवन के झोंकों में
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बसंत के मौसम में जब भी छू कर जाती मंद पवन याद हमे आते हैं अक्सर पहाड़, प्रकृति ‘ औ ' पंत तुम्हें निमंत्रण नक्षत्रों सा अवनी का कण-कण देता है पूज्य पंत जी फिर आ जाओ, पहाड़ तुम्हें बुलाता है
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सचाई तो यह है कि इन कामदेवों के प्रभाव में आज न तो धरती पर वन की सुंदरता है और न शीतल मंद पवन बहती है और न ही सरोवरों में कमल खिलते हैं, बल्कि वे अपने मौलिक स्वरूप को खो बैठे हैं।