वाहनों की भीड़ के साथ वो मदमाता हाथी और इन सबके बीच से सहमा हुआ पैदल आम आदमी कैसे गुजरा, तबले ने यह कहानी बड़ी भावुकता से सुनाई।
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अज्ञेय दीपावली उजास पर्व दीपावली पर सभी को शुभकामनायेंअज्ञेय की कवितायह दीप अकेला यह दीप अकेला स्नेह भराहै गर्व भरा मदमाता परइसको भी पंक्ति को दे दोयह जन है:
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यह अद्वितीय: यह मेरा: यह मैं स्वयं विसर्जित: यह दीप, अकेला, स्नेह भरा, है गर्व भरा मदमाता, पर इस को भी पंक्ति दे दो।
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अपने पवित्र होने का एहसास आदमी को ऐसा मदमाता है कि वह उठे हुए सांड की तरह लोगों को सींग मारता है, ठेले उलटाता है, बच्चों को रगेदता है.
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अपने पवित्र होने का एहसास आदमी को ऐसा मदमाता है कि वह उठे हुए सांड की तरह लोगों को सींग मारता है, ठेले उलटाता है, बच्चों को रगेदता है.काकेश जी, बहुत उम्दा पंक्तियां ।
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जोगी प्रभु प्रेम में मदमाता है इधर मैया ने दरवाज़ा बंद कियाये कैसा जोगी आया हैजानने को खिड़की से दर्शन कियाजोगी का रूप देख मैया का ह्रदय दहल गयासाँप, कांतर, बिच्छू लटक रहे हैं
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वह जा रही है देखो अरे भई कहां? महुआ बीनने, नशा यहां तीन गुना हो गया है मदमाता यौवन, महुआ, और वसन्त तीनों ने जीवन को नई अभिव्यक्ति दी है मानो।
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यदि हर बार के दृश्यों को तेजी से चला कर देखा जाये तो यही लगेगा कि मदमाता पानी बहा जा रहा है, सरल पर्तों को उघाड़ता, अन्याय सा लगता है, कमजोर को अपनी जगह से हटाती शक्ति।
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यह समिधा: ऐसी आग हठीला बिरला सुलगायेगा यह अद्वितीय: यह मेरा: यह मैं स्वयं विसर्जित: यह दीप अकेला स्नेह भरा है गर्व भरा मदमाता पर इस को भी पंक्ति दे दो यह मधु है:
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नमन इस कालजयी कुत्सा, अपमान, अवज्ञा के धुँधुआते कड़वे तम में उजास पर्व दीपावली पर सभी को शुभकामनायेंअज्ञेय की कवितायह दीप अकेला यह दीप अकेला स्नेह भराहै गर्व भरा मदमाता परइसको भी पंक्ति को दे दोयह जन है: