भारतेन्दुयुगीन साहित्यिक दौर में भी लेखकों के दो वर्ग हैं, एक वे जिनमें मध्यकालीनता और आधुनिकता का द्वन्द्व है, साथ ही मध्यकालीनता छूटते या शेष रह गए अवशेष के रूप में है, लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जो न केवल काव्य की पुरानी परिपाटी से चिपका है, बल्कि मानसिकता में भी वे द्वन्द्व या टकहाहट की स्थिति से अनभिज्ञ हैं।