हम आजकल के युवको को कामवासना में लिप्त हुआ पाते है क्योंकि मनोवैज्ञानिक तरीके से उनका पालन पोषद नहीं हुआ है इधर मोबाइल फोन इन्टरनेट आदि ने इनके सोचने क़ी शक्ति को ख़त्म सा कर दिया है तो वे कला में भी काम को तलाश करते है काम विशुद्ध्ह कला भी बन सकता है अगर इसकी ऊर्जा को कला क़ी तरफ मोड़ दिया जाये.
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आज देश का सर्वोच्च पद जिस तरह के राजनितिक व्यक्तियों से भरा जाना चहिये था वह नदारद है पर जिस तरह से राज्कुंवारों को ट्रेंड करके राजनीति में लाये जाने की योजनायें बनाई जा रही है वह भयावह ही नहीं भयानक भी है, जिस नवजवान की खेलने कूदने की उम्र हो और मनोवैज्ञानिक तरीके से भी उनका राजनीति में जाने का मन न हो फिर भी उसे धकेला जा रहा हो, वह क्या करेगा इसे हिंदुस्तान कई बार देख चुका है |