वे कहते थे, पोथी लेकर चलने वाला पंडित और मशाल लेकर चलने वाला मशालची दोनों एक जैसे हैं, जिन्हें दिखायी नहीं देता है।
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कहानी ऐसे बनी-17 तेल जले तेली का आँख फटे मशालची का हर जगह की अपनी कुछ मान्यताएं, कुछ रीति-रिवाज, कुछ संस्कार और कुछ धरोहर होते हैं।
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ये भी कोई बात हुई! तेली का तेल जले, मशालची का कलेजा फटे...क्यों? घरों में इतने बड़े-बड़े किचन, बाहर दुनिया भर के होटल-रेस्टोरेंट आखिर किस वास्ते....ऐं!!
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यह तो वहीं बात हो गई कि तेली का तेल जले और मशालची की …………..! क्षमा करें बड़ी मजबूरी में यह सब कहना पड़ रहा है।
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बिलकुल नहीं मैं पूछता हूँ कहाँ थे मीडिया के वे मशालची जब अकेला प्रभाष सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उन्मादियों से बाबरी विध्वंस के बाद लड़ रहा था.