क्योंकि जब इंगलैंड आद्यौगिक क्रान्ति से गुजर रहा था, तब भारत से लूटा-खसोटा लाया हुआ धन, वहां से लाए कितने खनिज पदार्थ, कितनी कलात्मक वस्तुओं ने इस आद्यौगिक महाक्रांति को इंगलैंड में सफल बनाने में अपना रोल अदा किया था।
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यह वह महान हस्ती है जो विश्व में अन्याय को समाप्त करने, दुनिया को न्याय व शांति से भर देने और मनुष्य को उसकी वास्तविक प्रतिष्ठा दिलाने के लिए अंतिम समय में लोगों की नज़रों के सामने आयेगी और समाज में महाक्रांति लायेगी।
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हरिहर ओझा की काव्य-पंक्तियों के द्वारा मैं अपने संघर्षशील व क्रान्तिकारी विचारक साथी को सलाम करना चाहता हूँ: “ महाक्रांति की ताल/ समय की सरगम/ नूपुर परिवर्तन के /और प्रगति की संगत पर / जो जीवन / नृत्य करेगा / वह /नहीं मरेगा / नहीं मरेगा / नहीं मरेगा!”
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इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने बल देकर कहा है कि ईरानी राष्ट्र की महाक्रांति, स्पष्ट लक्ष्यों के साथ अस्तित्व में आई और इतिहास में एक अपवाद के रूप में यह अब भी अपने सही मार्ग से विचलित हुए बिना उन्हीं लक्ष्यों और मूल्यों की ओर बढ़ रही है।
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वरिष्ठ नेता ने कहा कि फ़्रांस की महाक्रांति, विश्व की बड़ी जनक्रांतियों का एक उदाहरण थी जो तत्कालीन राजशाही व्यवस्था के विरूद्ध आई थी किंतु यह धीरे-धीरे अपने आरम्भिक लक्ष्यों से दूर होती चली गई और विभिन्न प्रकार की कठिनाइयां सहन करने के पश्चात फ़्रांस में पुनः राजशाही व्यवस्था लागू हुई।
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उन्होंने सन् 1963 में कहा-” महाक्रांति की बेला लानी ही होगी युग का भ्रष्टाचार मिटाना ही होगा बनकर इंद्र आज असुरों की सेना पर अपनी भीषण वज्र गिराना ही होगा यदि हमको अपने प्राणों का मोह रहा मानवता का होगा कभी विकास नहीं आजादी मिल गई, किंतु आजादी का जाने प्रिय! क्यों कर होता आभास नहीं।
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इस पुस्तक में हमने प्रमाणों और संदर्भों के साथ यह छानबीन की कि 1857-58 की भारतीय महाक्रांति के समय अमरीका के एक दैनिक पत्र “न्यूयार्क डेली ट्रिब्यून” में इस क्रांति के बारे में जो लेख, सम्पादकीय और रपटें लेखक या संवाददाता का नाम दिये बिना छपीं, उन्हें सौ साल बाद 1959 में मास्को से प्रकाशित “इंडियन वार आफ इंडिपेंडेंस” में माक्र्स और एंजिल का लेखन किस आधार पर बताया गया?
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यद्यपि ईरान में इस्लामी क्रांति, पिछली अर्धशताब्दी के दौरान अन्याय और वर्चस्व से संघर्ष के परिणामों का एक स्पष्ट उदाहरण है किंतु यह महाक्रांति स्वयं इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अमर महाआन्दोलन से प्रभावित है जिन्होंने अपने आन्दोलन से जीवन के बारे में दृष्टिकोण को ही बदल दिया और जीवन, सच्चाई को स्वीकार करना, न्याय की चाहत, स्वतंत्रता और मानव की महानता आदि के संबन्ध में नई परिभाषा पेश की।
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योजना तो 15 अगस्त को लालकिले के समान यहां झंडा फहराने की भी थी, पर मिन्नत करते पुलिस-प्रशासन और स्वतंत्रता दिवस पर देश की सुरक्षा का संज्ञान लेकर बाबा रामदेव ने 14 अगस्त की दोपहर वंचित वर्ग की दो बालिकाओं के हाथ से जूस पीकर अपना अनशन खोला, अन्य अनशनकर्त्ताओं का अनशन भी तुड़वाया और आंदोलनकारियों को यह संकल्प दिलाकर गंगा स्नान के लिए हरिद्वार चल दिए कि ' भ्रष्टाचार के विरुद्ध महाक्रांति का यह अभियान चलता रहेगा।
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इमाम ख़ुमैनी की इस प्रकार की गतिविधियों का परिणाम जो मात्रा और विस्तार की दृष्टि से अनुदाहरणीय थी, चौदह वर्षों के बाद निकला और ईरानी जनता ने वर्ष 1978 में पहली बार कुछ बड़े नगरों और बाद में पूरे ईरान में इमाम ख़ुमैनी के चित्रों और प्लेकार्डों को जिन पर इमाम ख़ुमैनी के बयान लिखे हुए थे शाही शासन और उसके पिट्ठुओं के विरुद्ध व्यापक स्तर पर प्रदर्शित किया और व्यवहारिक रूप से इस महाक्रांति में इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व को स्वीकार किया।